लघुकथा

झूठी शान !

मानव को अच्छा पहनने और घर में आधुनिक चीज़े लाने का बहुत शोक था, अपनी आय से बड़कर खर्चा करना और मंहगी चीज़े घर पर लाना और घर को सुन्दर बनाना उसकी फितरत थी। इस सबसे बेखबर कि अपनी आय से अधिक खर्चा उसके लिए सही नहीं है, वो सबकी परवाह किए बिना दोस्तो से पैसे उधार लेकर कभी घर में कुछ बनाता कभी मंहगे कपड़ों पर खर्च करता, कभी घूमने, कभी नई गाड़ी ले लेना और रिशतेदारों में अपनी ऊंची छवि बनाने में लगा रहता। पर वो यह नहीं जानता था कि यह सब बाद में मुसिबत बन सकता है। झूठी शान से कुछ हासिल नहीं होता, क्योंकि हकीकत एक दिन तो सामने आती है। माँ और पत्नि बहुत समझाते पर मानव अपनी ही धुन में रहता। उसकी एक बेटी थी तेरह वर्ष की और बेटा अभी छ: महीने का था। पत्नि के बार बार कहने पर भी कि उधार मत लो हम इतना कैसे चुका पाएंगे आपकी प्राइवेट नौकरी है। तुम क्यों चिन्ता करती हो, मैं हूँ ना ! कुछ न कुछ चक्कर चला लूंगा। मेरी बहुत जान पहचान है वो मुझे ना नहीं करते। पत्नि भी समझा के हार गई थी उसे भी असलियत पता नहीं थी। मानव दिन व दिन लालच में आता जा रहा था। कभी दूसरी मंज़िल बनाता घर की कभी मोटर साइकिल ले आता। सारे रिशतेदार और मौहल्ले वाले भी हैरान थे कि आखिर यह क्या काम करता है जो इतना कुछ इतनी जल्दी हासिल कर लिया। शायद बहुत अच्छी नौकरी होगी ?
फिर एक दिन मौहल्ले में बहुत शोर सुनाई दिया पता चला कि पैसे मांगने वाले घर पर आए हैं और बहुत झगड़ा हो रहा है , घर पर माँ और पत्नि थे मानव घर पर नहीं था ना ही उसका कोई पता चल रहा था। फिर बाद में पता चला कि उसने इतना उधार ले लिया था कि जिस पर सूद्द चढ़ कर इतना ज्यादा हो गया था कि मानव के बस से बहुत बाहर हो गया था और लोगों के परेशान करने पर उसने घर के कागज़ भी मां से चोरी जो कि माँ के नाम थे किसी ने दस्तख्त करा लिए थे कि वो घर उस के नाम कर रहे हैं जिसने उधार दिया था। माँ और पत्नि दोनो ही रो रोकर बुरा हाल कर रहे थे और बेटे की कोई खबर नहीं थी वो घर से डर के मारे भाग गया था पर माँ ने समझदारी से काम लिया और पुलिस थाने में जाकर अपने घर के कागज़ पर दस्तख्त वाली बात सुनाई और उसका हल पूछा जल्दी ही कागज़ वापिस मिल गए पर उधार तो देना था माँ ने ऩीचे वाला हिस्सा खाली कर दिया और वहां किसी कंपनी वाले को जगह दे दी और खुद ऊपर दो छोटे छोटे कमरों में गुज़ारा करने लगे। जो भी किराया नीचे से आता वो किशते चुकाने में लग जाता मां को पैंशन मिलती थी क्योंकि मानव के पापा की सरकारी नौकरी थी उनके गुज़र जाने के बाद पैंशन माँ को मिलती थी। सब मिलाकर किशते चुकाते और बेटे की नौकरी से जो पैसे मिलते उससे घर का खर्च चलाते, मुसिबत आ तो गई थी अब क्या कर सकते थे। बेटे की झूठी शान की आदत ने सारे घर का माहौल खराब कर दिया था। बेज़्जती हुई वो अलग, और खुद सबसे छुप कर कहीं चला गया था। उधार लेने वालों ने तो यहां तक धमकाया था कि अगर नहीं चुकाए पैसे तो तुम्हारी पत्नि और बेटी को उठाकर ले जाएंगे। पत्नि बहुत ही डर गई थी उसके मायकेवाले उसे ससुराल और पति को छोड़कर आने के लिए कहने लगे पर वो नहीं गई साथ में छोटा सा बेटा था फिर ननदों ने भी साथ दिया कहा कि हम यहीं रहेंगी जब तक भाई वापिस नहीं आ जाता भाभी तुम्हें फिक्र करने की ज़रूरत नहीं और पत्नि सास के साथ मिलकर उधार चुकाने में लग गई। स्थिति को समान पाकर बेटा भी घर वापिस आ गया था और माँ और पत्नि से रो रोकर माफी भी मांगी। बस यही कह रहा था एक मौका दे दो फिर ऐसा नहीं होगा। अब वो सुधर गया था, और अच्छा जीवन जीना चाहता था।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |