रूप अपना मैं अक्सर बदलती रही
रूप अपना मैं अक्सर बदलती रही
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रूप अपना मैं अक्सर बदलती रही
आपमें ही हमेशा मैं ढलती रही
माला बन आपके उर सुसज्जित रहूँ
खुद में ही मैं कुंदन सी गलती रही
पूर्ण हो जाये आराधना आपकी
बाती सी मैं दीपक की जलती रही
सर पटकती हुई लहरों की ही तरह
मैं पाने को किनारा मचलती रही
आप ही तक पहुंचना है लक्ष्य मेरा
इसलिये ही निरन्तर मैं चलती रही
रक्त रिसकर महावर रंगे पांव को
चलते चलते स्वयं ही सम्हलती रही
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©किरण सिंह