कविता

चुनावी साँप

 

ढ़ेर सारे साँप निकले है आजकल दौरों पर
जो हमेशा ही चुनावी मौसम मे निकलते है !

ढ़ेर सारे सपने हम सभी को दिखलाते है ये
फिर सारे सपनो को ये पाँच साल छलते है !

जनता ब़ेहाल रहती और भी परेशान रहती
इनके तो सिर्फ अपने ही रिश्तेदार फलते है !

सियासती खिलाड़ी अपना खेल दिखा रहे
माहौल को देखकर अपने चेहरे बदलते है !

साहित्य सेवक-
बेख़बर देहलवी
भा० सा० उ० स०

बेख़बर देहलवी

नाम-विनोद कुमार गुप्ता साहित्यिक नाम- बेख़बर देहलवी लेखन-गीत,गजल,कविता और सामाजिक लेख विधा-श्रंगार, वियोग, ओज उपलब्धि-गगन स्वर हिन्दी सम्मान 2014 हीयूमिनिटी अचीवर्स अवार्ड 2016 पूरे भारत मे लगभग 500 कविताओं और लेख का प्रकाशन