प्रेमिल किनारे का गुर
सुरेखा को इस वैलेंटाइन डे पर पिछले साल का वैलेंटाइन डे याद आ रहा था, जिसने सहसा उसकी ज़िंदगी को एक प्रेमिल किनारे का गुर दे दिया था. उससे पहले न जाने क्यों ऐसा होता था, कि सबके लिए मधुरिम और प्रेमिल छवि वाली सुरेखा के बोलने का ढंग उसके पति को ही रूखा और कटु लगता था. सुरेखा जान-बूझकर ऐसा कुछ भी नहीं करती थी, फिर भी न जाने कैसे पेच उलझ जाता था. उसे समझ ही नहीं आ रहा था, कि ऐसा क्यों है? उस दिन भी उसने सुबह-सुबह पति द्वारा बरामदे का नाइट लैम्प बंद करने पर सहज भाव से कह दिया था- ”अभी तनिक अंधेरा है, इतनी जल्दी नाइट लैम्प क्यों बंद कर दिया?” यह तो अच्छा था, कि धीरे-से कही हुई बात उसके पति ठीक से सुन नहीं पाए और पास आकर दुबारा पूछा. तब तक सुरेखा को अपनी ग़फ़लत का अंदेशा हो चुका था. उस दिन वैलेंटाइन डे था, सो उसने बहुत प्यार से कहा- ”हैप्पी वैलेंटाइन डे”. पति ने भी उसी प्यार से जवाब में – ”हैप्पी वैलेंटाइन डे” कहा. सुरेखा को लगा, कि उसे प्रेमिल किनारे पर पहुंचने का गुर मिल गया है.