गज़ल
कुछ अच्छा हूँ कुछ खराब हूँ मैं,
हकीकत हूँ कोई या ख्वाब हूँ मैं,
तनहा समझा करो ना खुद को,
हर वक्त तो तुम्हारे साथ हूँ मैं,
सिमटूँ तो हूँ फकत एक कतरा,
बिखर जाऊँ तो फिर सैलाब हूँ मैं,
ओढ़ ली हैं खामोशियाँ मैंने,
वर्ना हर बात का जवाब हूँ मैं,
रोक पाओगे ना किसी सूरत,
डूबता हुआ आफताब हूँ मैं,
यों बाँटता हूँ सुकूं सबको,
बेचैन पर बेहिसाब हूँ मैं,
दिनबदिन कीमती हो रहा हूँ,
गोया पुरानी शराब हूँ मैं,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।