खट्ठा-मीठा : मैं तो अपना वोट भैया को दूँगा
मैं यों ही बाजार की तरफ चला जा रहा था कि सामने से हमारे मौहल्ले का कलुआ आता दिखाई पड़ा। यों उसका नाम कालूराम है पर सब उसे कलुआ कहते हैं। उसका रंग-रूप भी कुछ ऐसा ही है। पहले जब भी वह दिखायी देता था तो उसकी सूरत ऐसी लगती थी जैसे कहीं से पिटकर आ रहा हो। लेकिन आज उसका चेहरा खुशी से चमक रहा था, जैसे उसकी लाटरी निकल आयी हो।
मैंने अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए उससे पूछा- ‘कलुआ, क्या बात है? बहुत खुश नजर आ रहे हो। किस बात पर इतना खुश हो रहे हो?’
‘जी मैंने तय कर लिया है कि अपना वोट किसको दूँगा।’
मुझे इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि चुनावों में वोट डालने से पहले हर आदमी तय करता ही है कि अपना वोट किसको देना है। आश्चर्य इस बात पर था कि वह केवल इसी बात से इतना खुश हो रहा है। उसकी खुशी का जरूर कोई दूसरा कारण होगा। मैंने पूछा- ‘यह तो अच्छी बात है! किसको वोट दोगे?’
‘मैं तो अपना वोट भैया को दूँगा।’
मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा। अभी कल तक यही कलुआ भैया को लानतें भेज रहा था कि उसने झुनझुने बांटने के सिवा कुछ नहीं किया। आज क्या बात हो गयी कि उसी को वोट देने को एकदम तैयार हो गया और इस बात पर इतना खुश भी हो रहा है। मैंने पूछा- ‘क्यों भैया ने ऐसा क्या कर दिया कि अपना वोट तुम उनको ही दोगे?’
‘भैया ने कहा है कि हम कटिया डालकर बिजली ले सकते हैं, पर वे पकड़ेंगे नहीं। पहले भी नहीं पकड़ा था, आगे भी नहीं पकड़ेंगे।’
‘यानी भैया तुम्हें बिजली की चोरी करने की इजाजत दे रहे हैं और इसके बदले में तुम उनको वोट दोगे?’
‘इसे चोरी नहीं कहते। जब दूसरे मुफ्त में झुनझुने ले सकते हैं तो मैं बिजली क्यों नहीं ले सकता? भैया तो गरीबों की सेवा कर रहे हैं।‘
‘क्या तुमने यह सोचा है कि सब बिजली चोरी करेंगे तो उसका बिल कौन देगा? जो चोरी नहीं करेंगे उनको दूना बिल भरना पड़ेगा। ’
‘यह सोचने का काम मेरा नहीं है।’
‘बिजली तो तुम तभी लोगे जब तारों में करंट आएगा। जब सभी बिजली चोरी करेंगे तो करंट कहां से और क्यों आएगा?’
‘यह सब सोचने का काम मेरा नहीं है। इसकी चिन्ता भैया करेंगे।’ कहकर वह चलता बना और मैं ठगा सा खड़ा हुआ सोचता रह गया। भैया ईमानदार लोगों की जेब काटकर चोरों और बेईमानों की जेब में डालने की घोषणा सरेआम कर रहे हैं और हम इसको रोक भी नहीं सकते।
— बीजू ब्रजवासी
फाल्गुन कृ 6, सं 2073 वि. (17 फरवरी 2017)