गुरमैल भाई: 11 ई.बुक्स की बधाई
आज गुरमैल भाई की भावभीनी मेल आई. लिखा था-
लीला बहिन , बुक ९ के लिए आप को बहुत बहुत बधाई हो। आप की मेहनत रंग लाई है। घुमा-घुमू कर बात नहीं लिखूंगा, यह सच है कि जिंदगी में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि कभी मेरी भी ईबुक्स बनेगी जब कि बहुत लोगों को अभी ईबुक्स का पता ही नहीं कि ईबुक्स क्या होती है। कहते हैं जब किसी को याद करो और वह उस पल दस्तक दे दे तो उस की उम्र बढ़ती है। अभी एक घंटा पहले ही कुलवंत बोल रही थी, कि लीला बहन से पूछना कि इस मेरी कहानी को छपवाने के लिए कितनी कीमत आ सकती है, तो मैंने जवाब दिया था कि इस में कौन सी बड़ी बात है, मैं सुबह ही लीला बहिन को ईमेल भेज कर दर्याफ़्त कर लूँगा। वाकई यह सच हो गया और आप की उम्र बढ़ गई।
आज तक आप ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। इस कहानी को लिखने में एक साल आठ महीने लगे और पता ही नहीं चला, वक्त कैसे बीत गया। आप, विजय भाई और मनमोहन आर्य के कॉमेंट बराबर आते रहे और अब राजकुमार भाई कॉमेंट देते हैं। कॉमेंट से मुझे बहुत हौसला अफजाई मिली, लगता था जैसे सब मेरे साथ-साथ चल रहे हैं। आखिर में आप की हौसला अफजाई और मेहनत को सलाम बोलता हूँ और राजेंद्र को मेरा बहुत बहुत आशीर्वाद।
आपका भाई
गुरमेल भमरा
उत्तर-
प्रिय गुरमैल भाई जी,
नमस्कार,
मैं भी घुमा घुमू कर बात नहीं लिखूंगी, यह सच है कि जिंदगी में मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि कभी मुझे भी आप जैसा भाई, कुलवंत जैसी भाभी मिलेगी. सब काम नियत समय पर होता है. हम भले ही न जानें, कि ई.बुक क्या होता है, बाबाजी को सब पता है, कि कब क्या होना है. वही हम सबको मिलाता है और हमसे जो कुछ करवाना होता है, करवाता है. हम पर और बच्चों पर आपका आशीर्वाद बना रहे.
आपकी सभी ई.बुक्स के लिंक इस प्रकार हैं-
https://issuu.com/leelatewani/docs/guru_e.book-1
लीला तिवानी