पानीपत की चौथी लड़ाई
चुनाव नजदीक था I हवा में महासंग्राम कर धुंआ फैल चुका था और वातावरण में उत्तेजना की गर्मी I महाभारत युद्ध का पूर्वाभ्यास आरंभ हो चुका था I मोटर गाड़ियां ध्वनि विस्तारक यंत्रों के द्वारा आकर्षक नारे और सुनहरे शब्द उछाल रही थीं I सर्वत्र चुनाव की पंचवर्षीय योजना पर तर्क-वितर्क चल रहे थे I मेरे पड़ोस में रहने वाले भूतपूर्व दस्यु सरगना और अभूतपूर्व गप्पबाज भी खादी के कपड़ो से लैस होकर चुनावी सभाएं कर रहा था I मेरे नगर में नकली दवाओं की निरंतर आपूर्ति करनेवाला सेठ बांके बिहारी भी इस चुनाव वैतरणी को पार कर राष्ट्रीय संसद में बैठने का अभिलाषी था I नगर में हत्या, बलात्कार के पावन कर्तव्य में चिर लिप्त रहनेवाला संग्राम सिंह भी संसद का गौरव बढ़ाने के लिए लालायित था I बयानबाजी, पोस्टरबाजी और नारेबाजी से पूरा क्षेत्र अर्जुन का ‘धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र ‘ बन चुका था लेकिन कुछ पेशेवर – अपेशेवर नेताओं और बगुला ब्रांड देशभक्तों को छोड़कर चंपतपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र की जनता ने निर्णय कर लिया था कि इस बार परदेसी भैया को सबक सिखाएंगे I विगत चुनाव में जनता ने महाराजा प्रपंच नारायण सिंह उर्फ परदेशी भैया को भारी मतों से विजय बनाया था और सोचा था कि परदेशी भैया क्षेत्र के विकास के लिए कुछ करेंगे, देश को भ्रष्टाचार के पंक से निकालकर स्वच्छ प्रशासन देंगे तथा मौलिक आवश्यकताओं की गठरी पर बैठे हुए कालाबाजारियों और व्यापारियों को राष्ट्रभक्ति के धर्म में दीक्षित कर अभिनव युग का सूत्रपात करेंगे I पर हाय रे जनता का दुर्भाग्य ! भैया जी तो प्रपंचावतार निकले I विजयी होने के बाद वे खाद्य मंत्री बने I शपथ ग्रहण के दूसरे दिन से ही बाजार से आवश्यक वस्तुएं गायब होने लगीं और आटा – चावल भी काला बाजार में अधिक कीमत पर बिकने लगा I जनता में हाहाकार मच गया I लोग परदेशी भैया को कोसने और गाली देने लगे I उन्हें महसूस हुआ कि एक बार पुनः उनसे गलती हो गई I
उधर परदेसी भैया अपने कुछ विश्वस्त विधायकों और सांसदों के साथ विदेशी दौरे पर चले गए I जब स्वदेश लौटे तो जनता के धैर्य का तापमान बहुत ऊपर जा चुका था और उसकी जेब रिक्त हो चुकी थी I जनता विद्रोह के मूड में आ गई थी और जहाँ – तहां नागरिक सेवाओं को बाधित करने का शास्वत और आसान तरीका आजमाया जा रहा था I निम्नवर्गीय जनता अपना आक्रोश सड़कों पर प्रकट कर रही थी और मध्यवर्गीय जनता अपने भवन की चारदीवारी के बीच अपना विक्षोभ व गुस्सा प्रकट कर रही थी I भैयाजी बी आर चोपड़ा के कृष्ण की भाँति दूरदर्शन के पर्दे पर अवतरित हुए और व्यापारियों से अनुरोध (विनम्र) किया कि वे स्थिति को सामान्य बनाने में सरकार की सहायता करें I चेतावनी का प्रभाव पड़ा और व्यापारी वर्ग अहिंसक हो गया I आवश्यक चीजें पूर्व की कीमत पर मिलने लगीं, तब तक व्यापारियों की तिजोरियां भर चुकी थीं और जनता की कमर भी टूट चुकी थी I वही परदेशी भैया पुनः चुनाव की वैतरणी पार करने के लिए जनता से भीख मांग रहे थे और अपनी गलती को सुधारने का एक और मौका देने की प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन इस बार जनता उनके झांसे में आने वाली नहीं थी I अब वह सयानी हो चुकी थी I भैयाजी के प्रपंचों का कोई असर नहीं पड़ रहा था I परदेसी भैया लोक हितकारी पार्टी के प्रत्याशी थे I यह पार्टी सत्ता में थी, इसलिए सरकारी उपलब्धियों और कामयाबियों की ‘हनुमान चालीसा ‘का जोर -जोर से पारायण चल रहा था तथा नाकामयाबियों और घोटालों को विरोधी दल का मिथ्या प्रचार बताया जा रहा था I सत्ता की मलाई से संतुष्ट लोग परदेसी भैया की जीत के लिए जमीन -आसमान एक कर रहे थे I सरकार से किसी न किसी कारण से असंतुष्ट प्राणी ‘भारतीय कृषक दल’ के बैनर तले एकत्रित थे I कृषक दल के प्रत्याशी थे परदेशी भैया के सहोदर भ्राता बसंत सिंह उर्फ बसंत भैया I बसंत भैया प्रशासनिक सेवा से त्यागपत्र देकर चुनावी दंगल में कूद पड़े थे I वह देश की राजनीति के शीलहरण से दुखी होकर सिद्धांत और ईमान का प्रवेशद्वार बनने की आकांक्षा से राजनीति में आए थे I
चंपतपुर में दो सहोदर भाई आमने-सामने थे I वे एक ही मकान में रहते, एक ही रसोई में बने भोजन करते लेकिन एक – दूसरे को गालियां देने में कोई रियायत नहीं करते थे I चुनाव मंचों से एक – दूसरे पर मंत्रपूत बाण छोड़े जाते, एक -दूसरे के कच्चे चिट्ठे पेश किए जाते, काले कर्मों को सार्वजनिक बनाया जाता और गाली कोश का विमोचन होता I वसंत भैया अपने अग्रज को प्रपंचावातर साबित करने के लिए उनकी चरितावली का परायण करते, उनके यौवन काल की गर्म कहानियों का अनावरण करते और उनके काले कारनामों की लंबी सूची के रहस्यवाद की सोदाहरण व्याख्या करते I जनता बसंत भैया के भाषण सुनती और सुखद भविष्य के सपनों में खो जाती I दूसरी ओर परदेशी भैया की सभा शान -शौकत से होती I उनकी सभा में देश के प्रख्यात नेतागण अवतरित होते, भाषण देते, आश्वासनों का पुलिंदा और वादों का बंडल फेंकते एवं सरकार द्वारा किए गए कार्यो का गुणगान करते I परदेसी भैया अपने अनुज को महान वंश का नालायक पुत्र, दिशाहीन और सिद्धांतहीन नौकरशाह, बेशर्म भाई आदि विशेषणों से अलंकृत करते I कहते कि यदि बसंत विजयी हो जाएगा तो देश में पतझड़ आ जाएगा, चंपतपुर की लोक हितकारी योजनाओं की अकाल मौत हो जाएगी, गरीबों के उत्थान कार्यक्रमों की गति मंद पड़ जाएगी I वह जनता से अपनी भूलों के लिए क्षमा मांगते, भींगी पलकों और सिसकते गले से बुढ़ापे की लाज रखने की करबद्ध प्रार्थना करते पर जनता कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं थी I उनकी सभा में जनता की अनुपस्थिति के ह्रदय विदारक दृश्य को देखकर लोक हितकारी पार्टी के नेतागण उदास -हताश हो जाते I
यह चुनाव क्षेत्र संपूर्ण देश में कई कारणों से आकर्षण का केंद्र बना हुआ था I परदेशी भैया का देश भर में नाम था I वह अपने वक्तव्यों और करतबों के कारण देश भर के समाचार पत्रों के मुखपृष्ठों पर बने रहते I प्रधानमंत्री के बाद सरकार में दूसरे नंबर पर उन्ही का स्थान था I जब प्रधानमंत्री ज्वलंत प्रश्नों के बियावान में भटक रहे होते तब भैयाजी समाधान की पोटली थमाकर उन्हें बाहर निकालते थे और हर बार उनकी सलाह दल और सरकार के लिए फायदेमंद होती थी I इसलिए प्रधानमंत्री की उन पर विशेष कृपा दृष्टि थी I वे भारतीय राजनीति के नियामक और नियंता, लोक हितकारी पार्टी के जाज्वल्यमान नक्षत्र तथा चाणक्य के आधुनिक जनतांत्रिक संस्करण थे I वे सब कुछ थे जो दूसरे राजनेता नहीं हो सकते थे I एक साथ इतनी विशेषताओं का स्वामी कोई भी राजनेता नहीं था I समाज सुधारक कौन तो परदेसी भैया, सत्ता में रहकर भी सत्ता से निर्लिप्त कौन तो परदेसी भैया I इसके विपरीत बसंत भैया राजनीति के लिए नए थे I उन्होंने जब प्रशासनिक सेवा से त्यागपत्र देकर भारतीय कृषक दल में शामिल होने की घोषणा की तो जनता ने उन्हें सर आंखों पर बिठा लिया, कृषक दल के नेताओं ने उनकी अभ्यर्थना की, स्वागत गीत गाए और दल का महासचिव बनाकर उन्हें सम्मानित किया I आखिर बसंत भैया दल को विजयश्री दिलानेवाले, न पिटनेवाले मोहरा थे I उन्होंने एक नया नारा दिया –समता, शालीनता और सामूहिक समृद्धि I यह नए शब्दों की चासनी में लिपटा पुराने नारों का का ही संस्करण था I बसंत भैया द्वारा आविष्कृत यह नारा दल के घोषणा पत्र का सार बना I सिद्धांतहीनता और अवसरवादिता की संकीर्ण गली में भटकती हुई राजनीति के लिए वे एक संभावना पुरुष बनकर खड़े थे I वे जन से विमुख व्यवस्था को जनोन्मुख बनाने के अभिलाषी थे I
चुनाव अभियान अपने उत्कर्ष पर था I चुनावी रंग में सराबोर गलियों और चौक -चौराहों पर समीक्षा –आकलन – भविष्यवाणियों के स्वर गूँज रहे थे I चुनाव की भंग पीकर सभी मतवाले बने हुए थे – जनसाधारण से शीर्षस्थ नेता तक, गंगू धोबी से लेकर राजा भोज तक, गिरगिटियावर्णी नेता से लेकर मौसमी नेता एवं सदाबहार नेता तक I बसंत भैया का चुनाव प्रचार जोर पकड़ता जा रहा था I उनके साथ जनता का समर्थन था और थी उनकी स्वच्छ छवि I तालियों की गड़गड़ाहट और जनता की उपस्थिति उन्हें विजय की शत – प्रतिशत गारंटी दे रही थी I उधर परदेसी भैया का अभियान शिथिल से शिथिलतर होता जा रहा था I उनके पास न तो जनता का समर्थन था और न समर्पित कार्यकर्ताओं का चरणस्पर्शी दल I जो उनके साथ थे, कोटा -परमिट -नौकरी की माया की डोर में बंधे प्राणी थे I पत्रकारों का दल उन्हें घेरे रखता था क्योंकि उन्हें अपने पत्रों के लिए भैया जी से पर्याप्त मसाले मिल जाते थे I जाहिर है कि परदेसी भैया राजनीति के मैदान में चाणक्य की हैसियत रखते थे I इसलिए सहज ही अपनी पराजय स्वीकार करनेवाले दुर्बल इच्छा शक्ति के नेता नहीं थे I अर्जुन की तरह उनकी आंखें हमेशा अपने लक्ष्य पर केंद्रित थीं और बुद्धि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सतत प्रयत्नशील थीं I वह दौलतवादी दर्शन के महाभाष्यकार थे और चार दशकों के अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने दौलत का भरपूर अर्जन किया था I भिन्न- भिन्न दिशाओं से आने वाली मुद्रावाहिनी नदियां उन तक आकर विराम पाती थी I वे असंख्य पेट्रोल पंपों, बसों, वातानुकूलित प्रासादों तथा सिनेमा भवनों के मालिक थे I अनेक देशी -विदेशी बैंकों में अरबों रुपए की श्वेत – श्याम राशि जमा थी I उन्होंने गरीबी हटाओ कार्यक्रम के अंतर्गत अपने सात पुश्तों की गरीबी दूर कर ली थी I ‘मुद्रा सत्यम, जगत मिथ्या ‘ में उनकी असीम निष्ठा थी I हाँ, कमाने की उनके शैली बिल्कुल भिन्न थी I इसलिए उनके निकटवर्ती लोग भी उनके इस रूप से परिचित नहीं थे I चुनाव के एक सप्ताह पूर्व उन्होंने अपनी रणनीति अचानक बदल दी I अपने समर्थकों से कहा कि अब भाषण को छोड़कर जनता से संपर्क स्थापना का कार्य होगा, लोगों की निजी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा I उन्होंने रैली और जुलूस के कार्यक्रम स्थगित कर दिए I अपने कुछ वफादार साथियों के साथ उन्होंने गांव-गांव पैदल जनसंपर्क करना आरंभ किया I जनता की समस्याएं तो अनंत थीं लेकिन उनका समाधान पैसा था I उन्होंने दो कार्य किए- पहला तो उन्होंने गांव-गांव में भरपूर पैसे बांटे और दूसरा आग्नेयास्त्रों और विस्फोटकों का भरपूर संग्रह किया I उनके अनुज अश्वासन -भाषण के प्रसाद बांट रहे थे, जनता को नए नारों और मुहावरों से लैस कर रहे थे I वे जनता की भीड और जिंदाबाद से अपनी विजय के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे I चुनाव के दिन पूर्व योजना अनुसार क्षेत्र के प्रत्येक बूथ पर रक्तबीज की संततियों के कुशल निर्देशन में शांतिपूर्ण चुनाव यज्ञ की समाप्ति हुई I बसंत भैया की जनता मुंह ताकती रह गई I बुलेट के हाथों बैलेट की ऐतिहासिक पराजय हुई I कागज स्वरूपा लक्ष्मी की माया ने जनसमर्थन को भूलुंठित कर दिया I परदेसी भैया रिकॉर्ड मतों से विजयी घोषित हुए, वसंत भैया की जमानत जप्त हो गई I परदेसी भैया का विजयोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा था I विजय के उन्माद में सभी झूम रहे थे I ग्रामोफोन पर गीत गूंज रहा था…….. जरा याद करो कुर्बानी ……!!!