हिंदी साहित्य का आसमान कुटिल साहित्यकारों, पक्षपाती आलोचकों और मूर्ख संपादकों से गंधित है I जिन साहित्यकारों से सहृदय होने की अपेक्षा की जाती है वे अपनी कुटिल चाल से राजनीतिज्ञों को भी मात देने की क्षमता रखते हैं I हिंदी में एक से बढ़कर एक धनशोधक, यौन शोषक और पाखंडी साहित्यकार विराजमान हैं जो […]
Author: *वीरेन्द्र परमार
आदिवासी समाज और साहित्य चिंतन : साहित्य की विविध विधाओं की अभिव्यक्ति
डॉ जनक सिंह मीना और डॉ कुलदीप सिंह मीना के संपादन में सद्यःप्रकाशित पुस्तक ‘आदिवासी समाज और साहित्य चिंतन’ में भारत के आदिवासी समाज और उनकी संस्कृति का बहुआयामी विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है I इस पुस्तक में विविध दृष्टिकोण से आदिवासी समाज के लोकजीवन का आकलन किया गया है I पुस्तक में विभिन्न विषयों […]
सिमट गये संवाद : यथार्थ से मुठभेड़
जिस साहित्यकार के साहित्य में अपने समय की संवेदना व्यक्त नहीं होती उसका लेखन शीघ्र काल-प्रवाह में विलीन हो जाता है I हिंदी और बज्जिका के सशक्त हस्ताक्षर हरिनारायण सिंह ‘हरि’ के साहित्य में समकालीन सामाजिक और राजनैतिक जीवन अपनी समस्त विडम्बनाओं एवं खूबियों के साथ अभिव्यक्त हुआ है I उन्होंने छोटी–छोटी घटनाओं को आधार […]
ब्रह्मपुत्र से सांगपो : एक सफरनामा
नैसर्गिक सौंदर्य, सदाबहार घाटी, वनाच्छादित पर्वत, बहुरंगी संस्कृति, समृद्ध विरासत, बहुजातीय समाज, भाषायी वैविध्य एवं नयनाभिराम वन्य-प्राणियों के कारण देश में अरुणाचल का विशिष्ट स्थान है । लोहित, सियांग, सुबनश्री, दिहिंग इत्यादि नदियों से अभिसिंचित अरुणाचल की सुरम्य भूमि में भगवान भाष्कर सर्वप्रथम अपनी रश्मि विकीर्ण करते हैं I इसलिए इसे उगते हुए सूर्य की […]
सामान्य जीवन की विशिष्ट कहानियाँ
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार नवनीत मिश्र की कहानियां नई संवेदना और नए तेवर से युक्त हैं I मिश्र जी की भाषा में एक जादुई आकर्षण है जो अभिनव भाव जगत से पाठकों का साक्षात्कार कराता है I इनकी भाषा का लालित्य पाठकों को मोहित करता है I नवनीत मिश्र के कहानी संग्रह ‘मेरी चयनित कहानियाँ’ […]
‘मुझे सब याद है’ में समरसता का संदेश
लोकजीवन से खाद–पानी, रस–राग और मिट्टी की सोंधी गंध ग्रहण कर अपनी कथाकृतियों को आकार देनेवाले हिंदी के वरिष्ठ कथाकार जयराम सिंह गौर की औपन्यासिक कृति ‘मुझे सब याद है’ में अद्भुत पठनीयता है I अपनी रोचकता के बल पर यह उपन्यास पाठकों को आरंभ से अंत तक बांधे रखता है I उपन्यास का केंद्रीय […]
गढ़ी छोर : लोक संस्कृति का प्रतिबिंब
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार जयराम सिंह गौर आम जनजीवन से रूप, रस, गंध और प्रेरणा लेकर अपनी कथाकृतियों को आकार देते हैं I इसलिए इनकी रचनाएँ पाठकों के मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं I इनकी औपन्यासिक कृति ‘गढ़ी छोर’ कानपूर अंचल की लोक संस्कृति का जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है I इसमें उस अंचल […]
यह नोटतंत्र है
जिस दिन पार्थ चटर्जी के घर से करोड़ों रुपए बरामद हुए उस दिन से मेरे घर में महाभारत छिड़ा हुआ है I पत्नी ने मुझे कौरव दल में खड़ा कर दिया और खुद पांडव पक्ष में खड़ी होकर कलियुगी गीता का पाठ कर रही है I उसने मुझे दुनिया का सबसे निकम्मा और नालायक पति […]
असम के शहीद स्वतंत्रता सेनानी
सूचना क्रांति के इस युग में भी पूर्वोत्तर भारत और शेष भारत के बीच अपरिचय का हिमालय यथावत खड़ा है I अपने ही देश के एक महत्वपूर्ण भूभाग के बारे में लोगों की जानकारी अधूरी और भ्रांतिपूर्ण है I इस स्थिति में असम के स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्य और त्याग की महागाथा से देशवासियों की […]
‘इनसे हैं हम’ : महान पूर्वजों की महागाथा
भारत भूमि का एक टुकड़ा मात्र नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों की ज्ञान परंपरा है, वसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष है, ऋग्वेद की ऋचा है, गौतम बुद्ध का शांति संदेश है, भगवान श्रीकृष्ण की गीता का निष्काम कर्मयोग है, गुरु नानक की वाणी है, सरस्वती की वीणा है और भगवान शंकर का डमरू है I […]