लघुकथा

आत्मघात (लघुकथा)

“एऽऽऽऽ कोन है रे तुमलोग? बचाओऽऽ बचाओऽऽ अरे पकड़ो……..”

हथियारबंद नकाबधारियों से अपनी पोती को छीनते रामनाथ बाबू की आर्त पुकार दूरतक जा रही थी लेकिन सुननेवाले अपने-अपने घरों में जा छिपे थे। कुन्दे के एक जोरदार प्रहार ने दादा को पोती का हाथ छोड़नेपर मजबूर कर दूर गिरा दिया। वैन में बच्ची को डाल अपराधी हवा हो गये। घायल, बदहवास रामनाथ बाबू के कानों में मतदान के समय कहे गये अपने ही शब्द गूँज रहे थे

“अरे काहे जाएँ ओट-वोट देने?……बाहुबलिए जीत जाएगा तऽ हमरा का बिगड़ेगा?…..”

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन