कर्म प्रधान विधान जहाँ
ब्राह्मण भोजन साद सदा, गुण क्षत्रिय तीख निभाय रहे हैं ।
वैश्य विधा अनुकूल प्रयोजन उत्तम भोग लगाय रहे हैं ।
शूद्र नियोजित वास बचे मन दीनन प्रीति लुभाय रहे हैं ।
कर्म प्रधान विधान जहाँ मन ‘राज’ वही मन भाय रहे हैं । ।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढी