चार कहार
चार कहार उठाय चले छवि आज पिया घर जाय रही है ।
चार चराचर रूप लुभाय विनोद करे मन भाय रही है ।
कन्त बसंत भयो सतसंग जमी गुण मोहन गाय रही है ।
शाम ढली उर आग लगी अवशेष विशेष बताय रही है ।
राजकिशोर मिश्र ‘राज’
चार कहार उठाय चले छवि आज पिया घर जाय रही है ।
चार चराचर रूप लुभाय विनोद करे मन भाय रही है ।
कन्त बसंत भयो सतसंग जमी गुण मोहन गाय रही है ।
शाम ढली उर आग लगी अवशेष विशेष बताय रही है ।
राजकिशोर मिश्र ‘राज’