“मुक्तक”
मापनी- 122 122 122 122
कहाँ से नहा चाँदनी आ गई री
किसी की वफा बेवफा छा गई री
दिखाती अमावस की काली घटा तूँ
हटा जुल्फ अपनी घिरी आ गई री॥-1
अभी सूख जाएगें पानी थिरा के
उगा आज सूरज किरनिया जगा के
चली जा अभी तूँ सुहानी जगह से
न बिजली गिरा रे बदरिया बुला के॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी