वर्ण-पिरामिड
स्वर्ण
साधना
देह मन
अहंकारित
मृग तृष्णा व्याल
कनक माया जाल ।
ये
स्वर्ण
प्रवेश
कलियुग
चढ़ मुकुट
राजा परीक्षित
है भ्रमित शिक्षित ।
दे
सखे
उत्कर्ष
नववर्ष
मुक्त संघर्ष
लुप्तअपकर्ष
हो फर्श अर्श हर्ष ।
दे
रात
प्रभात
नयासाल
कर कमाल
ह्रदयविशाल
मानवीय मिशाल ।