शादी की सालगिरह
आफताब की रश्मि से जैसे सबेरा होता है ।
जब मिलते है दो दिल तब जीवन में सबेरा होता है ।
[1]
मुबारक हो शादी की सालगिरह साहब ।
प्रेम ,ज्ञान नेह मय संसार प्यार साहब ।
शब्दों में कोई त्रुटि हो संज्ञान लीजिए।
भावना ह्रदय की मन छ्न्द कीजिए ।
जगमगाती रहे चाँद सी रोशनी ।
नीला गगन संग अम्बार लेकर ।
रौनक भरे जिंदगी में गजल
ख़ुशियाँ लुटाये जग में नवी बन ।
नीले गगन से दिनकर भी पूछे
कैसी फ़िज़ा है मेरे यार की ।।
नीले गगन में मेंघों की गर्जन
खुशियाँ बिखेरे तबस्सुम के जैसी ।।
जीवन की नौका मचलती रहे
प्रेम की माँझी में नित संवरती रहे।।
जीवन भी मुस्कान बिखेरे फूल खिले।
रिमझिम सावन नीर मिले ।।
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आफताब के प्रकाश में ,नीले आकाश में।
चाँद की चाँदनी में,प्रेममय उत्साह में।।
अपने पन का एहसास लिएबसंती बहार में ।
सावन सी बारिस में ,गुले गुलजार बन करके
महक जाये सदा आंगन ।
मुबारक हो शादी की वर्षगांठ ऐसी,
आभा सी बनकर चमक जाये बिजली ।।
[3]
अन्ज [धरती] आफताफ[सूर्य ] साआब[चमक] का आलमहो।
आलिम अजीज अत्तफ़ाल नूर सा आँगन हो।
प्रेम और सद्भाव भरे , ज्ञान की गंगा ।
मानवता गुलशनबन महके , गुलजार गुलिस्ताँ सावन के ।
मुबारक हो —शादी की सालगिरह आपको ।।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’