आँसू बहा रही हूँ
जख्म जो हरे हैं
उन पर मिट्टी डाल रही हूँ
पुराने जख्मों को याद कर
आँसू बहा रही हूँ |
नये जख्म अभी अभी हुए हैं
अतः दर्द थोड़ा कम है
जब थोड़ा समय की परत पड़ेगी
कोई ऐसी घटना घटेगी
तब यही जख्म पुनः याद आयेंगे
तब हम इसी जख्म पर
फिर से आँसू बहायेंगे |
अभी जो आँसू निकल रहे हैं
वह महज आँखों से बह रहे हैं
कुछ समय पश्चात् इसी जख्म पर
दिल से अश्रु निकलेंगे|
उनमें वेदना, बेचैनी, अकुलाहट होगी
फिर तो बरबस ही अश्रु छलक जायेंगे |
अभी तो बस लोगो की सहानुभूति का असर है
जो दिल नहीं मेरी आँखों से बह रहा है | ……….सविता मिश्रा