कठपुतली
हँसती हैं,
हंसाती हैं !
कभी रोती,
कभी रुलाती हैं !
कभी मचाएँ कोलाहल,
नि:शब्द कभी हो जाती हैं
होते हुए भी दोस्त… कई बार,
भूमिका दुश्मन की निभाती हैं !
हँसते – हँसते रो पड़ती हैं,
फिर यादों में कहीं खो जाती हैं !
लगा के चेहरे पर इक चेहरा,
चेहरे के भाव छुपाती हैं !
कठपुतली नहीं हैं,,,
पर बन कठपुतली…
पिता, पति और कभी पुत्र को,
जीवन की डोर थमाती हैं !
सच में नारियाँ …
बिन बोले… बन कठपुतली
कितनी भूमिका निभाती हैं ! !
अंजु गुप्ता