मैं हूँ कविता
मैं आज का ही नहीं
कल का भी हूँ
हजारों सालों से दबाये गये
असहाय जनता का स्वर हूँ
अक्षरों में प्राण
जन मानस का रूप
मैं हूँ कविता
दीन दुखी गाथा मैं
फटे-चीथडों में पला
असुंदर रूप हूँ मैं
हर बार शीश उठाकर
मानवता के पथ पर चलती
अपना अस्मिता दिखाती हूँ
कि मैं भी जीव हूँ
श्रम मेरा साथी है
सच्चाई का चेहरा मेरा
विजय का दरहास मेरा
गली-गली में
देश-विदेश में
इंसानियत को लेकर मैं चलती
मैं हूँ कविता