“आ हमारे साथ श्रम को ओढ़ ना”
अब पढ़ाई और लिखाई छोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
काम मिलता ही नहीं है, शिक्षितों के वास्ते,
गुज़र करने के लिए, अवरुद्ध हैं सब रास्ते,
इस लिए मेहनत से नाता जोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
समय कटता है हमारा पत्थरों के साथ में,
वार करने को जिगर पर हथौड़ा है हाथ में.
देखकर नाज़ुक कलाई मोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
कोई रिक्शा खींचता है, कोई बोझा ढो रहा,
कोई पढ़-लिखकर यहाँ पर भाग्य को है रो रहा,
आ हमारे साथ श्रम को ओढ़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)