कविता

प्रेम दिवानी

शाम सवेरे धुन में तेरे
खोई रहती
मैं मतवाली
लिपट लिपट कर
यादें तेरी
व्याकुल मुझको
कर जाती
होश हवास सब
सुध बुध खोई
हुई दीवानी तेरी
कैसा प्रेम का
रोग लगाया
बिन तेरे कहीं
चैन न आता
लाख जतन है
कर लिए मैने
पर ये दिल
सम्भल न पाया
एक तेरा ही नाम लेके
रात भर करवट बदले
आ जाओ अब
जानम मेरे
इस दिल को
जरा बहला जा
प्रेम की अगन में
जलता बदन जरा
आके प्यास बुझा जा।

*बबली सिन्हा

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