“बिगड़ रहा परिवेश”
हरकत से नापाक की, बिगड़ रहा परिवेश।
हमले सेना शिविर पर, झेल रहा है देश।।
—
करो-मरो की होड़ में, हैं मशगूल जवान।
लेकिन प्रमुख वजीर की, है खामोश जबान।।
—
मत को पाने के लिए, सड़क रहे हैं नाप।
सीमा के हालात पर, रहते हैं चुपचाप।।
—
मातम के माहौल में, मना रहे हैं जश्न।।
मुद्दों में हैं दब गये, सभी सुलगते प्रश्न।।
—
क्यों बैरी को गोद में, खिला रहे आदित्य।
भारी रक्षाबजट का, बतलाओ औचित्य।।
—
मीठी गोली से नहीं, घटे भयंकर रोग।
अस्त्र-शस्त्र का ही करो, बैरी पर उपयोग।।
—
घुस कर घर में शत्रु के, डट कर करो प्रहार।
अभी समय अनुकूल है, करो आर या पार।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)