हम भूले हैं..!
हम भूले हैंं..!
प्रश्न हैं कितने
हमारे जीवन में
अनादि से..
प्रश्न प्रश्न ही रह रहे हैं
निज खोज के अभाव में
धार्मिक विचार हैं अनेक
पोथी पुराणों से जुड़कर
अपने-अपने बढ़प्पन दिखाते
इन प्रश्नों का जवाबदारी मानते
आचरण में निष्फल होते
मानवता का अपहास बनाते
रंग-रूपों में
वर्ण-वर्गों में
सांप्रदायिकता में अपने को बंदी बनाते
अनंत शक्ति को
अपने रूप में खींचते,चित्रित करते
ठगते-फिरते, सत्य से हटते
जीवन यात्रा है हमारा,मूढ़ बनते
अपने मन की शीतल छाया में
अपने का आविष्कार भूले हैं
सत्य के साथ जुड़ने का हम भूले हैं