आेह ! ऋतुराज
ओह ! ऋतुराज न करना संशय आना ही है.
तुझको दूषित प्रकृति पर विजय पाना ही है.
धरा प्रदूषण का हलाहल पिए है मौन.
जन जीवन को संरक्षण तब देगा कौन.
ग्रीष्म शरद बरखा ने सदा कहर बरपाया.
देख रहे अब शीत शिशिर का रूप पराया.
तुम भी कहीं सोच बैठे हो साथ न दोगे.
कैसे तुम तब वसुंधरा का मान करोगे.
जगत् जननी के पतझड़ आँचल को लहराओ.
बसन्तदूत भेजा है हमने फौरन आओ.
दो हमको संदेश पुन: जीवन का भाई.
भेजो पवन सुमन सौरभ की जीवनदायी.
हम संघर्ष करेंगे हर पल ध्यान रखेंगे.
उपवन कानन प्रकृति धरा की शान रखेंगे.
स्वच्छ धरा पर हरसू सुरभित पवन बहेगी.
वसुधा वासन्ती आँचल को पहन खिलेगी.