ग़ज़ल : इंसान और इंसानियत
इंसान इंसानियत को भुल जाता है क्यो
छोटा होकर ये खुद बड़ा बताता है क्यो !!
ख़ुद अपने जिन्दगी मे भटका हुआ पड़ा
फिर दुसरो को ये रास्ता दिखाता है क्यो !!
इनके दिलो मे पलते है मतलब के सबब
फिर खुद ही बड़ा शरीफ़ जताता है क्यो !!
तु गै़रो से भी बद्तर है हम सभी के लिये
मेरे सामने यूँ मेरे ही कशीदे गाता है क्यो !!
यूँ कहता है मै सबका भला करता रहा हूँ
अगर जो किया तो यूँ फिर बताता है क्यो !!
खैरात नही चाहिये कहता फिरता है फिर
तोड़के सबके सपने अपने सजाता है क्यो !!
अब भी समय है जैसे हो वैसा दिखा करो
अपने चेहरे पर इतने चेहरे लगाता है क्यो !!
— बेख़बर देहलवी