गीत/नवगीत

अखंड आनंद पाएं

परमानंद को पाएं योग से परमानंद को पाएं
नर-देही का परम लक्ष्य है अखंड आनंद पाएं-

 
1.जीवन जीने की रीति को, ज्ञानी योग बताते हैं
शुद्ध हों मन-चित्त-बुद्धि जिससे, ऐसा मार्ग बताते हैं
तन और मन का मेल हो जिससे वह साधन अपनाएं-

 
2.सुंदर-स्वस्थ श्रीर जो चाहो, योग को ही अपनाओ
श्वास-प्रश्वास संतुलित करके, एकाग्रता बढ़ाओ
दैवी सद्गुण विकसित करके चेतन भाव जगाएं-

 
3.आत्मनिरीक्षण करके अपना, अपने को पहचानें
हम हैं प्रभु की सुंदर रचना, ऐसा हरदम मानें
सुख आसन में नयन मूंदकर, ध्यान में मन को लगाएं-

 
4.नमस्कार उस ईश्वर को जो, सृष्टि का संचालक है
स्नेह स्वरूप है पोषणकर्त्ता, ज्योति का विस्तारक है
सबका पालक-धारक-मालिक आओ उसको पाएं-

 
5.प्राणायाम षट्कर्म आदि से, तन सुदृढ़ होता है
सुंदर-स्वस्थ शरीर में सुंदर, मन का वास होता है
विवेक शक्ति का विकास कर हितकारी बन पाएं-

 
6.सत्य-अहिंसा-सहनशीलता, ब्रह्मचर्य का ज्ञान मिले
तप-संतोष-धारणा-मैत्री, प्रणिधान का ज्ञान मिले
आसन-यम-शम-नियम के द्वारा संयम को अपनाएं-

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244