अखंड आनंद पाएं
परमानंद को पाएं योग से परमानंद को पाएं
नर-देही का परम लक्ष्य है अखंड आनंद पाएं-
1.जीवन जीने की रीति को, ज्ञानी योग बताते हैं
शुद्ध हों मन-चित्त-बुद्धि जिससे, ऐसा मार्ग बताते हैं
तन और मन का मेल हो जिससे वह साधन अपनाएं-
2.सुंदर-स्वस्थ श्रीर जो चाहो, योग को ही अपनाओ
श्वास-प्रश्वास संतुलित करके, एकाग्रता बढ़ाओ
दैवी सद्गुण विकसित करके चेतन भाव जगाएं-
3.आत्मनिरीक्षण करके अपना, अपने को पहचानें
हम हैं प्रभु की सुंदर रचना, ऐसा हरदम मानें
सुख आसन में नयन मूंदकर, ध्यान में मन को लगाएं-
4.नमस्कार उस ईश्वर को जो, सृष्टि का संचालक है
स्नेह स्वरूप है पोषणकर्त्ता, ज्योति का विस्तारक है
सबका पालक-धारक-मालिक आओ उसको पाएं-
5.प्राणायाम षट्कर्म आदि से, तन सुदृढ़ होता है
सुंदर-स्वस्थ शरीर में सुंदर, मन का वास होता है
विवेक शक्ति का विकास कर हितकारी बन पाएं-
6.सत्य-अहिंसा-सहनशीलता, ब्रह्मचर्य का ज्ञान मिले
तप-संतोष-धारणा-मैत्री, प्रणिधान का ज्ञान मिले
आसन-यम-शम-नियम के द्वारा संयम को अपनाएं-