एक औरत मैं भी हूँ !
मैं एक औरत हूँ, पर्सन हूँ, राज करती हूँ सारे घर पर, सारे मोहल्ले पर, यानी हर तरह से मैं संतुष्ट हूँ। हर कामयाब औरत के पीछे उस का अपना कामयाब दिल और दिमाग होता है। यह बात हर औरत को समझ नहीं आ सकती क्योंकि इस के पीछे इस कामयाब औरत को अपने पुरखों से मिले जीनज़ होते हैं। पहेलियों में उलझाना मेरा काम नहीं है, मैं तो सीधी सीधी बात करने में विशवास रखती हूँ। लो जी अब धियान से पढ़ो सुनो ! मेरे पति परमेश्वर, काम पर जाते हैं, वोह सही मानों में परमेश्वर ही हैं क्योंकि वे मेरे आगे ऊंची नहीं बोलते। यह मुझे पता नहीं कि यह उन का सुभाव ही है या मेरे आगे बोलने की हिमत नहीं जुटा पाते, बाहर दोस्तों से तो वह खूब हंस हंस बातें करते हैं। दो बेटे भी काम करते हैं और बहुएं भी। बहुएं काम पे जाने से पहले और काम से आने के बाद,घर का सारा काम करती हैं और तन मन और धन से मेरी सेवा करती हैं। पहले पहले बड़ी बहु मेरे सामने कुछ अबा तबा बोलने लगी थी। उस को मैंने ऐसा सीधा किया कि अब मुझे जी जी कह कर बुलाती है। अगर बड़ी बहु के सामने मैं हार मान जाती तो वोह मुझ पर रोअब जमाती। मैंने घर में उस की हैसीयत बता दी, छोटी को खुद ही समझ आ गया। बहुओं के माँ बाप तो बेटी के माँ बाप होने की हैसीयत खूब समझते हैं और दान दहेज़ भी खूब दिया और अभी भी कोई दिन त्योहार हो, मरियादा के मुताबिक सभ कुछ करते हैं, करें भी क्यों ना, उन को पता है कि मैं समाजक विधि विधान के कामों से समझौता नहीं कर सकती। कभी मेरे माँ बाप ने भी तो यही किया था, अब मैं पीछे क्यों हटूँ? बेटे तो बहुत अच्छे और गाय की तरह हैं। अब तुम सोचो कि मेरे लिए यह स्वर्ग नहीं है तो और किया है!
अब आती हूँ मेरी बाहर की दुनिआं की तरफ, तो भई, सारा मोहल्ला मेरा लोहा मानता है। मोहल्ले की सभी औरतें मेरा आदर करती हैं। करें भी क्यों नहीं, भई मैं सभी औरतों के गुप्त राज जो जानती हूँ, जिन को जानने के लिए मुझे वक्त भी कम नहीं लगा। मोहल्ले की सारी लड़कियों का इतिहास मुझे पता है। मजाल है ! कोई मेरे सामने बोल जाए ! एक दफा किसी ने मेरे खिलाफ बोला तो मैं उस का सारा इतिहास डंके की चोट पर जग जाहर कर देती हूँ। टीवी रिपोर्टर तो बहुत देर से पहुंचेंगे, मैं तो उसी वक्त ब्रॉडकास्ट कर देती हूँ और ऐम्बुलेंसें आने का माहौल हो जाता है, किया पता कोई गश खा कर गिर पड़े। इस सब के लिए मुझे मिहनत भी कम नहीं करनी पड़ती। कोई लड़की कुछ ज़ियादा बन संवर कर घर से बाहर निकलती है तो मेरी आँख से वोह छुप नहीं सकती। मैं फट समझ जाती हूँ कि कुछ दाल में काला जरूर है, मैं कुछ इस तरह उस का पीछा करने लगती हूँ कि उस को पता ही ना चले। बहुत दफा तो मुझे जल्दी कामयाबी मिल जाती है। किस किस को मिलती है, कैसी बातें उस के साथ करती है, मेरी चोर नज़र और कान से वोह बच नहीं सकती और मैं जल्दी उसे पकड़ लेती हूँ। फिर उसे अपने बड़े पन का रोअब दिखाती हूँ, उस के घर वालों को उस का राज बताने की धमकी देती हूँ तब तक, जब तक कि वोह डर ना जाए। मैं इतनी बुरी भी नहीं हूँ, मैं उस को सांत्वना देने लगती हूँ और अपने बड़े पन का इज़हार करके उस को नसीहत देती हूँ। उस को यकीन दिलाती हूँ कि मैं उस के घर वालों को नहीं बताउंगी। बस जी ! इस के बाद तो वोह मेरी बहुत इज़त करने लगती है।
बहुत दफा मुझे मैदान जंग में भी आना पढ़ जाता है। इस के लिए भी मैं तीर कमान ले कर आ जाती हूँ। कुछ दिन हुए मिसेज़ कौशल के घर मैंने एक आदमी को जाते देख लिया। गया तो वोह बहुत इर्द गिर्द देख कर था, लेकिन मेरी नज़रों से वोह कैसे बच सकता था ! जब बहुत देर तक वोह घर से बाहर न निकला तो मैंने मिसेज़ कौशल का दरवाज़ा जा खटखटाया, दरवाज़ा खुलते काफी देर लगी, मिसज़ कौशल कुछ घबराई सी बाहर निकली। चाची जी ! किया काम है, उस ने पुछा, तो मैं भीतर ही चले गई कि मैंने उन से एक बात करनी थी। मिसज़ कौशल हाँ हूँ करती घबराई हुई इधर उधर देखने लगी, जिस से मुझे सारा पता चल गिया कि दाल में काला ही नहीं बल्कि सारी दाल ही काली है। मिसज़ कौशल के मुंह पे हवाईयां उड़ रही थीं और मैं दिल में खुश खुश हो रही थी। फिर मैंने पूछ ही लिया, मिसेज़ कौशल ! तुमारे घर में कोई आदमी जाता देखा था ! इसी लिए तो इधर चली आई, क्या पता कोई बुरा शख्स हो ! लो भई, अब तो मिसेज़ कौशल रोने लगी और बोली, चाची जी ! कृपा किसी को बताना नहीं, नहीं तो मैं बर्बाद हो जाउंगी। अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे ! तीर कमान की तो जरुरत ही नहीं थी, दुश्मन तो पैर छूने को तैयार था। अब मैंने मीठा ज़हर देना शुरू कर दिया और बोली, ” मिसेज़ कौशल ! मैं कोई पागल थोहड़े हूँ कि बाहर शोर मचाती फिरूँ, यकीन रख मैं किसी को नहीं बताउंगी, अच्छा अब मैं चलती हूँ ” बस जी ! अब मिसेज़ कौशल भी मेरा पानी भर्ती है। अब मैं उस के घर जाती ही रहती हूँ और वोह मुझे तरह तरह के पदार्थ खिलाती है।
मैं धार्मिक भी बहुत हूँ, गुरदुआरे जाती हूँ, लंगर में सेवा करती हूँ। लंगर बनाते समय दाल सब्ज़ियां और फुलकों पर बहुत धियान रखती हूँ। कोई स्त्री फुल्के सही न बनाये तो उसे झिड़क देती हूँ, दाल सब्ज़ी में मिर्च मसाला कम या ज़्यादा डाले तो आँखें दिखाती हूँ। मेरे देखने से ही वोह गलती महसूस करने लगती हैं क्योंकि सभी मुझ से डरती हैं। करें भी किया भाई ! सारी संगत ने परशाद जो छकना है, खाने स्वादिष्ट होने चाहिए। अरे भई फोरमैन भी तो होते ही हैं, वोह इसी काम के तो लिए होते हैं कि कुछ गलत ना हो जाए। जब औरतें इकठी हों, एक दूसरे की चुगलियां ना करें तो बात बन ही नहीं सकती। मैं सभ की बातें सुनती रहती हूँ क्योंकि मुझे भी इस में मज़ा आता है। यह बात दुसरी है कि कभी कभी मैं उन को मीठी झिड़की भी देती रहती हूँ लेकिन इस हिसाब से कि वोह बातें करती भी रहें। गुरदुआरे आने का यही तो फायदा है, वक्त बहुत अच्छा बीत जाता है, बाबा जी के घर में हाजरी भी लग जाती है। कुछ लोग कहते हैं, पाठ करना चाहिए, धर्म ग्रन्थ पड़ने चाहियें, इतिहास पड़ना चाहिए लेकिन मैं तो एक ही बात जानती हूँ कि गुरदुआरे माथा टेक लिया और बाबा जी को सब पता चल जाता है, पढ़ पढ़ गाड़ी भरिये में मेरा विशवास नहीं है और इस के अतिरिक्त गुरदुआरे में दुनिआं भर की ख़बरें मिल जाती हैं, अखबार पढ़ने की कोई जरुरत ही नहीं है। किया मालूम कौन सी खबर का इस्तेमाल करना पढ़ जाये। कुछ लोग कहते हैं, बोर हो गए, वक्त पास नहीं होता, ओ जी ! मुझे तो फुरसत ही नहीं मिलती, लोगों के झगड़ों में अपनी भागेदारी शामल करना तो लोग सेवा का हिस्सा ही है ना ! और फिर किसी के घर में सोग पढ़ जाए तो फट हाज़र हो जाती हूँ, उन के घर डेरा ही जमा लेती हूँ और अपना दिल उस घर में ही ढेरी कर देती हूँ, कई कई दिन उन का साथ देती हूँ और वहीँ बैठ कर खाती हूँ, वोह खुद ही मजबूर करते हैं, अब मैं भला कैसे इनकार कर सकती हूँ, तब तक अपने घर वापस नहीं आती हूँ, जब तक उन को नींद ना आने लगे। तेहरवें के बाद भी मैं जाती रहती हूँ, आखर यही तो इंसानियत है। यह बात दुसरी है कि वोह तंग आने लगते हैं लेकिन उन को यह पता नहीं होता कि उन का कितना नुक्सान हो चुक्का होता है। घर से कोई शख्स चले जाए तो कितना बड़ा सदमा है। ऐसे वक्त पर किसी की मदद करना ही तो इंसानियत है। यही तो वजह है, सब मुझे इज़त से चाची जी चाची जी कह बुलाते हैं। भई, इज़त बनाने के लिए दिल तगड़ा होना चाहिए।
मुहल्लों में, किसी चौल में झगडे तो होते ही रहते हैं और उन के झगड़ों का निपटारा मैं ना करूँ तो और कौन करेगा ! दूध का दूध और पानी का पानी कर देती हूँ क्योंकि सभी के भेद मुझे पता है। इन कामों के लिए किसी कालिज से डिग्री नहीं लेनी पढ़ती, यह तो जैसे मैंने पहले कहा,पुरखों से मिले जीन के कारण ही होता है और इन की डिग्री खुद ही लेनी पड़ती है। कोई मुजाहरा हो तो सब के आगे झंडा ले कर चलती हूँ, बेछक मुझे कुछ पता नहीं होता कि मुजाहरा किस काम के लिए होता है। कोई रिपोर्टर पूछे तो बस इन्साफ चाहिए ! इन्साफ चाहिए ! कह कर आगे बढ़ती जाती हूँ, जवाब देने के लिए और औरतें कोई कम होती हैं भला! मेरा काम तो जलूस का जोश बढ़ाना होता है। जब कोई टीवी रिपोर्टर वीडियो ले रहा होता है तो गला फाड़ फाड़ कर कैमरे के सामने चिलाती हूँ, दूसरे दिन अखबारों में मेरी फोटो पहले सफे पर होती है। मुझे तो बहुत सी पार्टियों में पार्टी उम्मीदवार के लिए खड़े होने की पेशकश भी बहुत दफा आ चुक्की है लेकिन मुझे तो और ही समाज सेवी कामों से फुरसत नहीं मिलतीं, फिर अपने घर पर भी तो कंट्रोल रखना होता है, ऐसे में खामखाह वक्त बर्बाद क्यों करें ! लोग सेवा में मुझे तो एक मिंट की फुरसत नहीं मिलती। हां जी मैं झाड़ फूंक भी कर लेती हूँ, किसी के बच्चे को बुखार हो जाए तो मैं हथौला भी कर देती हूँ और उस को आराम आ जाता है। कुछ आज के पड़े लिखे बोलते हैं कि आराम तो डाक्टर की दुआई से आया, झाड़ फूंक तो बेकार की बातें हैं, यही तो आज की पढ़ाई है, झाड़ फूंक में किया शक्ति है, यह आज के छोकरे छोकरियां किया जाने !
मोहल्ले में कोई करियाने की दुकान चलाता हो, रेहड़ी पर सब्ज़ी बेचने के लिए आता हो, मुझ से एक पैसा भी ज़्यादा वसूल नहीं कर सकता। दूसरे लोगों से ज़्यादा वसूली कर लें, मुझे इस से किया ! मुझे तो अपना देखना है, बहुओं की सख्त कमाई से लिए पैसे क्यों ज़ाया करूँ। भिखारियों पर बहुत नज़र रखती हूँ, किया मालूम इन में कोई आतंकवादी हो। मैं तगड़ी भी बहुत हूँ। मर्दों जैसी ताकत है मुझ में। एक दफा मैने एक चोर को पकड़ लिया था। मिसेज़ शेख, पति के साथ कहीं बाहर गई हुई थी। दूर से ही मुझे कुछ संदेह हुआ कि किसी ने मकान का ताला तोडा है। मैंने झट से अंदर जा कर उस को दबोच लिया और शोर मचा दिया। लोग इकठे हो गए और पोलिस आ गई, वोह उसे थाने ले गए। उस दिन से ही मिसेज़ शेख मेरी बहुत इज़त करती है और कुछ न कुछ मुझे देती ही रहती है, कभी कोई स्वैटर बना कर दे देती है और कभी कुछ। सच जानों, जिस दिन से मैंने मिसेज़ शेख का घर बचाया है, मेरी इज़त बहुत बढ़ गई है। मैं एक कामयाब औरत हूँ और इस वक्त मोहल्ले में जितनी इजत्त मेरी हैं, उतनी पड़ी लिखी औरतों की नहीं है, जिन्होंने इतने साल स्कूल कालज में खर्च कर दिए। इसी लिए तो मैं कहती हूँ कि मैं एक कामयाब औरत हूँ।