गज़ल
रास्ते की जो मुझे दीवार समझता रहा,
उसी शख्स को मैं अपना यार समझता रहा,
लोग झूठ-मूठ का सलाम ठोकते रहे,
मैं यूँ ही अपने आप को सरकार समझता रहा,
सबने इस्तेमाल किया मुझे अपने मतलब से,
और खुद को मैं होशियार समझता रहा,
मुझे नहीं,चाहते थे मेरी माल-ओ-मिलकत वो,
नादान था मैं इसको उनका प्यार समझता रहा,
मरते ही उन्होंने मेरे कपड़े तक उतार लिए,
ता-उम्र अपना मैं जिन्हें परिवार समझता रहा,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।