मुआ ये जाड़ा (ठंड के हाइकु)
1.
रज़ाई बोली –
जाता क्यों न जाड़ा,
अब मैं थकी!
2.
फिर क्यों आया
सबको यूँ कँपाने,
मुआ ये जाड़ा!
3.
नींद से भागे
रज़ाई मे दुबके
ठंडे सपने!
4.
सूरज भागा
थर-थर काँपता,
माघ का दिन!
5.
मुँह तो दिखा –
कोहरा ललकारे,
सूरज छुपा!
6.
जाड़ा! तू जा न –
करती है मिन्नतें,
काँपती हवा!
7.
रवि से डरा
दुम दबा के भागा
अबकी जाड़ा!
8.
धुंध की शाल
धरती ओढ़े रही
दिन व रात!
9.
सबको देती
ले के मुट्ठी में धूप,
ठंडी बयार!
10.
पछुआ हवा
कुनमुनाती गाती
सूर्य शर्माता!
– जेन्नी शबनम (23. 1. 2017)
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