तेरा एहसास
चुपके से
ना जाने कब से
मेरी इन चंचल चितवन में,
आन बसे हो…
तुम चितचोर !
हो खुद से बेखुद…
कभी साँझ ढले,
कभी भरी दोपहरी
आ बैठती हूँ…
पेड़ों के मध्य !
मादक हवा संग…अक्सर
मदहोश हो जाते हैं
मेरे एहसास !
स्वप्निल आँखों से,
अपलक निहारूँ
मन में बसी
छवि तेरी…
चहूँ ओर !
एकाकी मैं हो कर भी
कहाँ एकाकी रहती हूँ
रहती हैं तेरी यादें
तेरा एहसास
और प्रकृति की अनुपम छटा…
हरदम मेरे संग !
अंजु गुप्ता