राजनीति

सन २०५० के बाद

बचपन में बड़े बुजुर्ग बताया करते थे की १०० साल तक हिजड़ो का राज रहेगा जिसकी अवधी २०४७ समाप्त हो रही है. सन्दर्भ में एक किस्सा सुनाया करते थे बहुत रोचक था भगवान् राम बन जाने लगे तो अयोध्या वासियो से कहे की सारे नर नारी वापस चले जांय. भगवान् जब १४ साल बाद बन से वापस लौटे तो देखे की हिजड़े वापस नहीं गए थे। भगवान् जब पूछे की आप लोग वापस क्यों नहीं गए तो लोगो ने कहा की आप तो नर नारियो को वापस जाने के लिए कहा था. भगवान् को बड़ा दुःख हुआ औए बरदान दिए जाओ कलिजुग में तुम लोग १०० साल तक शासन करोगे जो २०४७ मे समाप्त हो रहा है. अभी अभी एक अमेरिकी थिंक टैंक ने भविष्यबाणी की है की सन २०५० तक भारत में मुस्लिमो की संख्या ५० %हो जाएगी जिसमे ३० % कन्हैयावादी जुट जायेंगे.

हम भले सोमनाथ के पुजारियो की तरह कान में तेल डाल कर खर्राटे लेते रहे लेकिन यह एकदम सटीक आंकड़ा है. आज भी मुसलमान और उनके जैसे सोच वालो की संख्या ५० % आस पास है, जिसको झुठलाना देश को धोखा देने के सामान है. चूँकि ६५ साल तक झुठलाने वालो का ही शासन रहा है लिहाजा इनके जैसे सोच वालो की जड़े बहुत मजबूत हो गई है. ७० साल तक ऐसे प्रवित्तियों को अगर हम नहीं समझ पाए तो उसका सबसे बड़ा दोष सत्ता लोभ है जिसके लिए ऐसे प्रवित्तियों को हम मौके दर मौके बढ़ावा देते रहे. अल्पसंख्यक होने के बाद भी अगर कोई भारत माँ को डायन कहे, प्रधान मंत्री चिन्दी चिन्दी करने को कहे, राष्ट्रवाद का मजाक उड़ाए, प्र म के तस्वीर को जुटे से पिटवाये तो भविष्य के भयावहता का अंदाजा लगाया जा जिस प्रकार भारतीय शिक्षन संस्थाओ में कन्हैया, गुरमेहर, उम्र खालिद जैसे लोगो की एक नई पौध उग रही है , जिनको मोदी बिरोधियो का भारत तेरे टुकड़े होंगे के लिए भरपूर समर्थन मिल रहा है का साथ होना लगभग तय है , चिंता का विषय है.

सीरिया के कुछ कालेजो में इस्लामिक संगठनों का उभार आज आईयस रूप ले चूका है जिसे पुरे दुनिया के देश मिलकर भी आज तक नेस्ट नाबूद नहीं कर पाए है. अमेरिकावासी जो आज दुनिया सबसे अधिक संपन्न, साक्षर उदारवादी है, इस खतरे को भांपकर ही ट्रम्प जैसे हिटलर को राष्ट्रपति चुने हैं. इस्लामी देशों में हो रहे युद्धो से पीड़ित जानो के लिए शरण द्वार खोलने वाले देशो का भी अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा है. अब सवाल उठता है की आईयस , जो लगभग समाप्त होने के कगार पर है , एक न एक दिन समाप्त हो ही जायेगा , फिर भी एक प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है की क्या आई यस के साथ वह प्रबृत्ति भी समाप्त हो जाएगी जिसके वजह से आई यस का उदय हुआ ? राष्ट्र के कीमत पर मानवीय बनना बड़ा आसान है लेकिन मानवीयता के ढोंग से उत्पान्न हुए समस्या को निर्मूल करना बड़ा मुश्किल ? विशेषकर भारत जैसे लोकतंत्रीय ब्यवस्था में !कैसा विरोधाभाष है , जिसको अपने रहन सहन , रीती रिवाज , परंपरा तक को उन्मुक्त भाव से मनाने की आजादी नहीं है वही अभिब्यक्ति की आजादी के लिए शोर मचा रहे है. बाल विवाह , सती प्रथा कब का निर्मूल हो चूका है लेकिन तीन तलाक आज भी मुस्लिम औरतो के गले का फांस बना हुआ है.

निश्चित तौर पर दोषी वह नहीं है जिन्हें हम दोषी समझ रहे है , दोषी तो वह है जो इसे साम्प्रदायिकता रूप दे रहा है. दोषी वे लोग हैं जो अपना हित साधने के लिए मुस्लिम, बौद्ध ईसाई बनने की धमकी देने लगते हैं. देश इस समय जातीय, धार्मिक, वैचारिक संक्रमण काल से गुजर रहा है जहा इ सब सामाजिक कुप्रथा दूर करने के कम सत्ता दिलाने के सबल हथियार बन गए हैं. आज देश से उस प्रबृत्ति को समाप्त करना होगा जिसके कोख से उन्मुक्त अभिब्यक्ति की आजादी और छद्म असहिष्णुता का जन्म हुआ है. इसके बाद आबादी किसी की घटे बढे देश के सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104