संविधान निर्माता या कांग्रेस की जो भी नियत रही हो लेकिन दलितों के उत्थान के लिये जो भी नियम उपनियम बनाए गए आम जन मानस को उससे कोई एतराज नहीं था क्योकि लोग अंतर्मन से महसूस कर रहे थे की दलितों की हालत सच में बहुत दयनीय है और उन्हें कुछ ऐसी सुविधा मिलनी चाहिए […]
Author: राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय
अंगार
हमने चरखा बदल दिया है बारूदी अंगारों से बहत छले गए है अबतक गांधीवादी नारों से लोकतंत्र के मज़बूरी में देश नहीं बिकने देंगे उमर कन्हैया जिग्नेशो को यहाँ नहीं टिकने देंगे जो जो इनके साथी है गिन गिन इन पर वार करो संसद कोर्ट कचहरी से बाहर इनका प्रतिकार करो देश बचाना ही होगा जे यन यू के गद्दारों से गंगा […]
राष्ट्रघाती प्रचार
गुजरात चुनाव प्रचार हास्यास्पद मोड़ पर पहुच गया है जहाँ तमाम विलेन मिलकर एक हीरो को मुंह चिढाने में लगे हैं। कांग्रेस के अनुसार राहुल गुजरात में एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे हैं लेकिन समझ में नहीं आता कि जब वे गुजरात में इतने लोकप्रिय हैं तो उन्हें जातिवादी शक्तियों से हाथ मिलाने […]
कभी कभी मन करता है
कभी कभी मन करता है कांग्रेस में शामिल हो जाऊ ऐश करू खूब मौज करू राहुल भैया को सहलाऊ मोदी जी बहुत ही निष्ठुर है खायेंगे ना खाने देंगे खुद तो जीवन सुख पा न सके हमको भी नहीं पाने देंगे वैसे भी मोदी क्या कम थे जो योगी को भी बुला लिए हम रसिया […]
कैसी साख किसकी साख
कैसी साख , किसकी साख ? आजकल साख शब्द की बहुत चर्चा हो रही है / मोदी की साख , राहुल की साख , गुजरात की साख ! लगता है गुजरात के लोग इस बार साख का चुनाव करेंगे / मुझे एक किस्सा याद आ रहा है की एक बार बादशाह अकबर दरबारियों से पूछे […]
ऐसी भाषा तो —-
मुगलों के टुकडो पर पलने वाले और उनके दरबार में अच्छा अच्छा ओहदा और रूतबा पाए मानसिंह , जयचंद ! अंग्रेजो की चापलूसी और देश के साथ गद्दारी करके मस्नाब दार बने हिन्दुस्तानी भी ऐसी भाषा नहीं बोलते थे जैसा की आजकल कन्हैया , चिदंबरम , मणिशंकर , फारुख अब्दुल्ला बोल रहे है और आश्चर्यजनक […]
गरीबी क्यों ?
आज मै अपने दो मित्रो की कहानी साझा कर रहा हु. १- मेरे एक मित्र रामाज्ञा है, हम लोग साथ साथ पढ़े लिखे थे, बचपन साथ में बीता था. अपने अपने कारणों से वे कही दूर चले गए, मै बनारस में रह गया. करीब १५-२० साल बाद इत्तिफाक से मेरी उनकी मुलाक़ात लखनऊ में हो […]
बेटियों के बहाने
बड़ा सम्बेदंशील शब्द है और कुटिल बुद्धिकारो के लिए अल्पसंख्यक, दलित की तरह इस्तेमाल करने में बहुत मुफीद! अल्पसंख्यक, दलित की तरह अब इनको भी इस्तेमाल करनेवालों की होड़ लगी है. क्योकि इनका भारत में सामाजिक स्वरुप ही कुछ ऐसा है. गांवो में एक किस्सा आम है. एक महिला सड़क किनारे घास काट रही थी, […]
दद्दा ज़ी
हमारे गांव के बगल में एक दद्दा जी है जो स्वभाव से अक्खड़ और घोर राष्ट्रवादी. ८७ साल उम्र होने के बावजूद चेहरे पर वही चमक और सिंह के दहाड़ जैसी आवाज. दिन भर गाय भैंस चराना और आल्हा, राणा प्रताप और क्रांतिकारियों के बहादुरी तथा त्याग के गीत गाना उनकी दिनचर्या है. साफगोई तो […]
भारत को यतीमखाना बनाने की कोशिश
बिगत कुछ दिनों से रोहिंग्या मुसलमान के मुद्दे पर भारत की राजनीति गरमा गई है जैसे यह मुद्दा म्यामार का न होकर भारत का मुद्दा है. चीन पाकिस्तान बंगलादेश जो इससे ज्यादे करीब है बिलकुल नहिकार कर अपना पल्ला झाड लिए है. वहा कोई बहस नहीं हो रहा है स्वयं म्यामार में भी उतना बहस […]