शादी के लडडू
मैने कॉलेज की पढाई सफलता पूर्वक पूरी कर ली । पढ़ना इसलिए जरूरी है जिससे कोई काम मिल सके । काम भी मिल गया ।घर के अनेकों काम, अपना लंच बनाना फिर ऑफिस जाना , मैं काम पर देर से पहुँचता था बॉस नाराज होता था । मेरा एक रिश्तेदार था एक बार मैंने उसे पैसे उधार देने से मना कर दिया था । वो शायद मन ही मन मुझसे बदला लेने की सोच रहा था । उस ने सोचा बदला लेने के लिए इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि इसकी शादी करवा दी जाए । मेरी शादी करवा के मेरी परेशानी बड़ा दे , लड़की वालों की परेशानी दूर कर दे । लड़की वाले और मैं दोनों उसके एहसान से दबे रहेंगे । उसने लड़की की फोटो दिखाई । मैं जिंदगी में पहली बार शादी कर रहा था । शादी का कोई तजुर्बा नहीं था । झट से हाँ कर दी ।
बॉस शादी जैसे बेकार से काम के लिए छुट्टियां देने के लिए राजी नहीं था क्योंकि उसका कहना था ” हमें मालुम है जन्नत की हकीकत, लेकिन दिल को बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है ” । मैने उसे यकीन दिलाया की शादी के बाद काम पर ठीक वक़्त पर पहुँच जाया करूंगा, क्योंकी अभी खाना बनाने में ही टाइम लग जाता है। बॉस ने बड़ी कुटिल मुस्कान से मुझे देखा, उस वक़्त मैं उसकी मुस्कान का मतलब न समझ सका । लीजिये जनाब शादी भी हो गयी ।
वह एक स्कूल में टीचर थी । स्कूल से आकर जब वह सब्जी बनाने के लिए प्याज काटती तो उसकी आँखों में आंसू देखकर मेरी आँखों में आंसू आ जाते । एक दिन मैने उससे कहा कि हम दोनों काम करते हैं फिर तुम ही अकेली क्यों खाना बनाओ , मैं भी तुम्हारे साथ खाना बनाने में मदद किया करूंगा । वह यह सुनकर हैरान रह गयी । कहने लगी कहीं ऐसा भी होता है , लोग क्या कहेंगे, नहीं नहीं मै ऐसा सोच भी नहीं सकती । मैं ठहरा क्रांतिकारी, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की मैंने भी ठान ली थी मैने कहा नहीं मैं लोगो की परवाह नहीं करता । आज से घर के काम हम दोनों मिल कर किया करेंगे ।
मेरी श्रीमती बड़ी ही शर्मीली लजीली संस्कारो वाली “थी “। मेरे घर पहुँचने पर ही खाना खाती मेरे बिना खाना न खाकर भूखी रहती । में एक क्रांतिकारी विचारों वाला नौजवान “था” । मैंने कहा कि भूखी ना रहा करो मुझे कभी कभी देर हो जाती है खाना खा लिया करो ।
मैं जब घर पहुँचता तो श्रीमती जी सब्जी, प्याज, टमाटर , हरी मिर्च , लहसुन, धनिया वगैरह बाहर निकाल कर रख देती थी । मैं सब काट देता था । यह रोज का नियम हो गया । एक दिन कहने लगी मुझसे आटा नहीं गूंथा जाता, मैं ठहरा क्रांतिकारी आटा भी गूंथ के रख दिया । एक दिन लहसुन प्याज टमाटर सब काट दिया श्रीमती जी आएंगी खुश हो जाएंगी कि बिना कहे सब कर दिया । श्रीमतीजी आयी, देखा, कहने लगी कितने दिन हो गए सब्जी काटते काटते यह भी नहीं पता कि भिन्डी में टमाटर नहीं डाला जाता । क्रांतिकारी की क्रान्ति सब धरी कि धरी रह गयी । कभी धनिया भूल जाता कभी टमाटर काट कर रख देता ।
एक दिन सब्जी प्याज वगैरह बाहर नहीं रखे थे , मैंने पूछा सब्जी कहाँ है श्रीमती जी ने कहा कि देख लीजिये फ्रिज में ही कहीं होगी । धीरे धीरे रोज का नियम हो गया कि सब्जी टमाटर प्याज लहसुन वगैरह आप ही निकालिये आप ही काटिये । एक दिन श्रीमती जी किसी काम कि वजह से देरी से घर पहुंची । मुझे भूख लगी थी मैंने सोचा अपनी रोटी बनाकर खा लूँ । सोच रहा था श्रीमती जी कितनी खुश होंगी कि मैने अपनी रोटी आप बनाकर खा ली । श्रीमतीजी पहुंची, मैंने शुभ समाचार सुनाया । श्रीमतीजी कहने लगी मेरी रोटियां बनायी कि नहीं ? मैं तो शर्म से पानी पानी हो गया, मैंने कहा जब तक आप कपड़े बदलती हो खाना आपको तैयार मिलेगा ।
दूसरे दिन श्रीमती ने काम से आते ही पूछा खाना बन गया क्या ? मैंने कहा नहीं आटा भी गूथना था सब्जी भी ख़त्म थी बाजार जाना पड़ा इसलिए देर हो गयी । अच्छा आगे से ध्यान रखा करो श्रीमतीजी का कहना था ।
ऑफिस समय पर पहुँचने में फिर देरी होने लगी । बॉस ने पूछा कहो पहले तो अकेले थे अब देरी क्यों होती है ? मैने उत्तर दिया सर अब दो लोग हैं देरी तो होगी ही । बॉस को उस दिन पहली बार खुल कर हँसते देखा । मैं तो उस हंसी को देखकर गुस्से को पी गया क्योंकि गुस्सा पीने की कला अब मुझे अच्छी तरह आ गयी थी । बॉस की कुटिल मुस्कान का मतलब मुझे उस दिन समझ में आया । लिखते लिखते काफी वक़्त हो गया है । अभी तक झाडू पोंछा नहीं हुआ । श्रीमती जी आती ही होंगी । कहेंगी क्या करते रहे दिन भर ? इतना भी नहीं हो सका ?