कविता

अज्ञानी

अधूरे ज्ञान पे ,
तुझे, अभिमान कैसा ?
 
अधंकार  मिटाती है चादँनी ,
फिर,सूरज को खुदपे  गुमान कैसा ?
 
 बिक जाए कुछ टूकडो मे ,
 लोगों का वो !   इमान कैसा ?
 
  अज्ञानी जल जाते मेरे ज्ञान से,
  ‘रचना’ तेरे नाम का, ये असर कैसा ?
 
 पत्थरों में, मिट्टी न रहे ।
 वो !  इंसान ही  कैसा ? 
 
 घमंड मे खो जाता सब ।
 वक्त गुजरने पे, पशेमां कैसा ?
 
 ऐसे ज्ञान से अज्ञानी ही अच्छे  ।
 अहंकार भरदें जो, वो ज्ञान कैसा ?
 
रचना 

रीना सिंह गहलौत 'रचना'

कवयित्री नई दिल्ली