प्रेम
प्रेम ..
पीड़ा के सहचर !
अतृप्ति तेरे रग में क्यों ?
प्रष्व ..
दग्ध कर पींजर !
बने फिरते जग में क्यों ?
प्रेप्सा ..
सबके हिय की !
अप्राप्य ‘किशन’ ता उम्र छलते ,
प्रार्थित ..
जो इस कदर !
प्रार्थक के नहीं भग में क्यों ?
— दामोदर कृष्ण भगत ‘किशन’