क्षणिका

प्रतीत है

प्राबल्य  प्रेरणा प्रभा  ..  प्रजायी है    प्रतीत है , तृषा ‘किशन’ त्रैकाल की .. प्रिया तू प्रेय प्रीत है ! — दामोदर कृष्ण भगत ‘किशन’

कविता

प्रेम

प्रेम ..पीड़ा के सहचर  !अतृप्ति तेरे रग में क्यों  ?प्रष्व ..दग्ध कर पींजर  !बने फिरते जग में क्यों  ?प्रेप्सा ..सबके  हिय की !अप्राप्य ‘किशन’ ता उम्र छलते ,प्रार्थित ..जो  इस  कदर  !प्रार्थक के नहीं भग में क्यों ?          — दामोदर कृष्ण भगत ‘किशन’

कविता

हे भारत कर शत्रु क्षय !

हे भारत ! कर शत्रु क्षय ! शोषित शताब्दी सप्ताधिक अनंतक ! अनाचार अत्याचार दुर्दम्य अरि ! दंभ युक्त वक्ष पर किए कितने वार !कभी तुम चक्षु विहीन ! शोणित रंजित !बने थे अधिमुक्तिक !चार बाँस , चौबीस गज अंगुल अष्ट ! पर संधान !कहाँ वह शान !जयचंद ?या चौहान  !                    अभी करना है ! […]