ग़ज़ल
किसी से करता है बातें किसी की सुनता है
वो आदमी है कि यारो कोई फरिश्ता है
मुझे जो चोट लगे आँख उसकी भर आये
कि उसका मेरा अजीबो-गरीब रिश्ता है
जमाना समझे वो गाफिल है नींद में मगर
वो आदमी की हिफाजत के ख्वाब बुनता है
मैं उसके ध्यान में जब डूबने को होता हूँ
तभी वो हौले से मँझधार में उभरता है
अजीब ‘शान्त’ सी हरकत है उसके हाथों में
वो बीच काँटों से केवल गुलाब चुनता है
— देवकी नन्दन ‘शान्त’