लोकतंत्र
एक दिन देश को खोजते खोजते
गांव जा पहुंची
एक किसान से टकराई
और देश को जानने के लिए
गांव दिखाने का आग्रह कर बैठी
अपने खून पसीने को कर के एक
उगी हुई लहलाती फ़सल
दिखा के किसान मुस्कुराया
और मैं उसकी मुस्कान मैं
अपनी मुस्कान मिला बैठी
जब मुस्कान मिल ही गई
तब मैंने उसका हसिया
गेहूँ कि बाली के साथ मिलाया
और कहा
लोकतंत्र के मायने समझो
वो जनता का जनता के लिए जनता द्वारा बनाया गया है
इस लिए तुम उसे लेकर किसानो की आवाज बनो
उसने सहमति से हामी भरी
फिर एक दिन
जब सारे खेत और खलियान
मुह बाये पढ़े थे ओंधे
मैंने किसान के तंत्र को जगाया
और उसे गांव से संसद तक का रास्ता दिखाया
कभी न बैठने वाले किसान को धरने पर बैठाया
उधर संसद की बरी थी उनकी बहस जरी थी
कुछ वाद था कुछ विवाद था
मैं सारे विवाद से किनारा कर
किसान के कान में फुसफुसाई
दिखा दो इन्हें तुम किसान हो जय जवान हो
किसान उठा और उसने घोषना कि
मुआवज़ा या अनशन
तभी भीड़ से आवाज आई
आत्मदाह , आत्मदाह
इससे पहले कि किसान कुछ समझ पता
किसान का शरीर राख बन हवा में उड़ रहा था
और भीड़ अमर रहे के नारों के साथ
अपने कर्तव्य पूरा कर रही थी
चैनल वालो को बाईट देते नेता
राख से चिंगारी पैदा कर रहे थे
खेत और खलिहान ओंधे मुह अब भी पढ़े
सिसकिया भर रहे थे
और मैं , मैं अब सारा देश देख चुकी थी
लोकतंत्र के मायने सीख चुकि थी ।