होली
होरी के रंग मे रंगा गाँव-शहर सब संग,
कलाकन्द गुझिया कटैं देखि पूर्णिमा चन्द।
देखि पूर्णिमा चन्द लाल गुलाल उड़ावै,
खोज खोज कै इक दुसरे का रंग लगावै।।
होरी होरी सब कहैं मन मे उठै उमंग,
पर गरीबका घर नही लछमीजी के संग।
दिनभर श्रम करत मुलु शाम जेब है तंग,
कैसै कपड़ा होरी के पहिरावै लड़िकन अंग।
पकवान बनावै खातिर लड़त सदा है जंग,
पिचकारी मा होरी का भरिहैं कैसे रंग।