गीत/नवगीत

ऐ जिंदगी बता

ऐ जिंदगी बता तेरे कितने हैं रूप
कभी छांव तो कभी लगती है धुप

था मासूम सा बचपन थी मैया की गोदी
बड़ा क्यूँ हुआ मैंने गोदी ही खो दी
कभी बोलती कभी होती है चुप
ऐ जिन्दगी बता तेरे कितने हैं रूप

बड़ा जब हुआ जिम्नेदारियों ने घेरा
समय संग माँ बाप ने भी मुंह फेरा
नहीं भुल सकता तेरा रौद्र रूप
ऐ जिंदगी बता तेरे कितने हैं रूप

जीवन की संझा हुयी अक्ल आई
आने लगे याद राम और कन्हाई
अंतिम घडी गिनने लगते गुपचुप
ऐ जिंदगी बता तेरे कितने हैं रूप

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।