कहानी

कहानी -राबिया अम्मा

यह कहानी है राबिया अम्मा की मेरे गांव में मेरी पड़ोसी थी। तब मैं काफी छोटी थी। बात की गहराई को नहीं समझती थी। आज लगभग तीस साल बाद राबिया अम्मा की बातें मेरे दिल में हलचल मचा रही है। इसलिए इस कहानी के माध्यम से उसे निकालने की कोशिश कर रही हूं क्योंकि अम्मा की यह बातें हर माँ को अपनी सी लगेगीं।
रामपुर में अम्मा के पति जिन्हें हम चचा कहा करते थे। उनका अपना व्यवसाय था। अच्छे उच्च श्रेणी के लोगों में उनकी गिनती थी। तीन बच्चे थे। दो बेटियां और एक बेटा। उनकी बीच वाली बेटी रूबी मेरी हम उम्र थी। हम दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे पर स्कूल अलग अलग थे।रूबी भी पढ़ने में बहुत अच्छी थी। हम दोनों ही अपने अपने स्कूल में प्रथम  आते थे। रूबी से छोटी सबिया थी। वह भी पढ़ने में बहुत अच्छी थी। राबिया अम्मा को हम “अम्मा “इसलिए बोलते थे क्योंकि उनके तीनों बच्चे अम्मा कहते थे। अपनी “माँ” को, हम माँ कहकर ही पुकारते थे। राबिया अम्मा का एक बेटा था जो रूबी और सबिया से बड़ा था। उसका नाम रिहान था। रिहान भाईजान भी पढ़ने में काफी अच्छे थे।रिहान भाईजान से रूबी सात साल छोटी थी।जब रिहान भाईजान इंजीनियर बन के अमरीका गए उससमय हम और रूबी मैट्रिक में पढ़ते थे और दो साल छोटी होने के कारण सबिया आठवीं में थी।
अम्मा ने तीनों बच्चों को बहुत मेहनत से बहुत अच्छी तरह पाला था। चचा अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते थे। धन की कोई कमी नहीं थी। अम्मा के तीनों बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ते थे। उन स्कूलों की फीस बहुत अधिक थी इसलिए हम जैसे मध्यम श्रेणी के लोग उसमें नहीं पढ़ सकते थे। वे तीनों हर वक्त अंग्रेजी बोलते थे। अंग्रेजी के ही गाने व फिल्म देखते थे। अम्मा और चचा अपने बच्चों को देखकर बहुत खुश होते थे। हम लोग हिन्दी माध्यम के स्कूलों में पढ़ने के कारण अंग्रेजी में थोड़े कच्चे थे। पर पढ़ने में बहुत अच्छे थे।
रूबी और सबिया तो छोटी होने के कारण ठीक थी पर रिहान भाईजान पर अंग्रेजियत का रंग कुछ अधिक चढ़ रहा था। वे अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे थे। प्रतिदिन अम्मा और रिहान भाईजान का किसी न किसी बात पर झगड़ा होता रहता था। उस समय हम इतना ध्यान नहीं देते थे। पर आज एक एक बात मुझे याद है। रिहान भाईजान ने एक बार तो   हमारे सामने अम्मा पर हाथ भी उठा दिया था। अम्मा बहुत रोती थी। वे अम्मा से कहते थे तुमने हमारे लिए क्या किया है। सब अब्बू ने ही किया है। तुमने हमें जन्म देकर कौन सा बड़ा काम कर दिया है। सभी मां बच्चों को जन्म देती हैं। रिहान भाईजान अम्मा से नफरत करते थे। इसका कारण क्या था। हमें मालूम नहीं था।

रूबी और सबिया भी अम्मा की अपेक्षा अब्बू को ज्यादा सम्मान देती थी। जब तब अम्मा को जवाब देती थी। घर का कोई काम भी नहीं करती थी। घर का सारा काम अम्मा अकेले करती थी। अम्मा पढ़ी-लिखी थी। उनको एक स्कूल में नौकरी भी मिल गई थी पर रूबी के अब्बू ने नहीं करने दी।आज इतने सालों बाद सब ज्ञात हुआ कि चचा अम्मा को बहुत दबा कर रखते थे। हमेशा ही उनको डांटते रहते थे। तीनों बच्चों को उनके खिलाफ भड़काते रहते थे इसलिए रिहान भाईजान तो अम्मा को एक नौकर जैसा समझते थे। अम्मा बहुत छोटे घर की थी। रूबी के अब्बू को अपने धन का बहुत घमंड था। धीरे-धीरे उनके तीनों बच्चे संस्कार संस्कृति से बहुत दूर होते गए। रूबी और सबिया तो बेटी होने के कारण अम्मा को थोड़ा बहुत मानती थीं पर रिहान भाईजान का अत्याचार तो देखा नहीं जाता था। अम्मा रो रो कर कहती अपना खून ही ऐसा है। शिकायत भी करूँ तो किससे और किसकी  ? मेरा बेटा है अल्लाह मियाँ उसको लम्बी उम्र दे उसको समझदार बनाये।अम्मा का मन अपने बेटे के लिए तड़पता रहता था।
   अमरिका जाने के बाद तो वह पूरी तरह अम्मा को भूल गया। अम्मा कभी फोन करती तो फोन पर ही उनसे लड़ता था। उनको बुरा भला कहता था क्योंकि अब्बू ने बचपन से ही अम्मा के विरुद्ध इतना भरा था कि वे भूलता नहीं था। जबकि अम्मा में कोई बुराई नहीं थी। वे बहुत समझदार व अनुशासित महिला थी। उन्हें बच्चों का समय से सोना समय से उठना पसंद था जबकि उनके तीनों बच्चे इसके विपरीत थे। वे पूरी पूरी रात जाग कर फिल्म देखते रहते और सुबह दो बजे तक उठते थे। कभी कभी तो नहाते भी नहीं थे। अम्मा पांचों वक्त की नमाज़ पढ़ती थी। उन्हें अपने बच्चों का यह रवैया बिल्कुल पसंद न था पर उनके अब्बू उनका साथ देते थे। इसलिए तीनों बच्चे अम्मा से चिड़ते थे।

रूबी मेरी सहेली होने के कारण मेरा उनके घर में आना जाना लगा रहता था। मैं जब भी रूबी के घर जाती तब घंटों अम्मा से बातें करती। वे पूछती थी बेटा तुमने नहा लिया तब मैं बताती थी कि हमारे पापा तो सुबह पांच बजे नहा कर नाश्ता बनवाते हैं। बिना नहाये बनाने से वे नहीं खाते हैं। अम्मा बहुत खुश होती और कहती तुम्हारे पापा बहुत अच्छे और समझदार हैं। देखो दिन चढ़ आया यह तीनों तो अभी तक सो रहे हैं। मैं कहती, आप रूबी को उठा दीजिए तो वे कहती बेटा आज रविवार है। वे लोग दोपहर में उठेगें। उनको उठाने से अभी घर में कलह हो जाएगी। तू तो बहुत समझदार है। तेरे माँ बाप भी बहुत अच्छे हैं। उस समय मैं कुछ नहीं समझती थी। पर अम्मा को देखकर लगता था कि अम्मा बहुत दुखी हैं। वे मेरे साथ बहुत सी बातें करती थी। उनकी उस घर में कोई हैसियत नहीं थी। उनसे कोई सलाह मशविरा भी नहीं लिया जाता था। उनके अब्बू का एक छत्र राज्य था। वह हमेशा खोई खोई सी रहती थी। वे मुझसे बात करके अपना मन हल्का कर लेती थी। बातों ही बातों में उन्होंने मुझे बताया कि उनकी एक भी ऐसी सहेली नहीं है जिससे वह अपने मन की बात खुल कर बता सके।आजकल तो सभी लोग दूसरे के दुख को देख कर हँसते हैं। वह मुझे अपने बचपन की बातें बताती थी उनके घर में किसी बात की कमी नहीं थी।सब लोग हँसी खुशी से रहते थे। उनके पिता ने बीस वर्ष उनकी शादी कर दी थी। जब वो बाइस की भी नहीं हुई थी कि रिहान हो गया।उन्होंने तीनों बच्चों को बहुत प्यार से पाला पर कहीं कोई चूक हो गई। जिसके कारण वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दे सकी।उनके बेटे ने अमरीका में एक बच्चे की मां से शादी कर ली थी।
एक दिन फेसबुक में मैंने अपनी पुरानी सहेली रूबी को देखा तो मैं बहुत खुश हुई उससे फोन नंबर लिया, बात की तो पता चला कि वह दिल्ली में है। सबिया लंदन में है। जब मैंने अम्मा और चचा के बारे में पूछा तो वह जोर-जोर से रोने लगी। फिर जो कुछ उसने बताया उसे सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। उसने बताया अम्मा का इंतकाल हुए तो लगभग पंद्रह साल हो गए। अम्मा के जाने के बाद अब्बू अकेले घर में रहते हैं। रिहान भाईजान और सबिया तो बाहर रहते हैं। मैं कभी कभी अब्बू के पास चली जाती हूँ। आजकल उनकी मानसिक अवस्था भी ठीक नहीं है। रिहान ने हम सबके साथ रिश्ता खत्म कर दिया है। उनका कभी फोन भी नहीं आता है। वे तो अम्मा के इंतकाल पर भी नहीं आए थे। आज अब्बू को अपने किये पर पछतावा होता है। इसलिए वे शरीर से अधिक मानसिक रोगी हो गए हैं। अकेले अपने आप से बातें करते रहते हैं। अम्मा की फोटो के आगे रोते रहते हैं। अपने गुनाह की माफी मांगते हैं।

रूबी की बातें सुनकर मैं कांप उठी और सोचने लगी यह पुरूष प्रधान समाज कब तक औरत को दबा कर रखेगा। कोई न देखे पर खुदा सबके कर्म देखता है। हर किसी को जीते जी ही अपने कर्मों का फल इस धरती पर भोग कर जाना पड़ता है। अम्मा ने अच्छे कर्म किये थे इस लिए बिना कष्ट भोगे चली गई और अब अब्बू अपने किये पर पछता कर विक्षिप्तावस्था में दिन काट रहे हैं। पुरूष वर्ग क्यों नहीं समझता है कि नारी पुरुष की सखी- संगिनी है। सहचरी है। वह भी इंसान है, उसकी भी ख्वाहिशें हैं। वह भी पुरूष की तरह फलक छूना चाहती है। इन सबसे बड़ कर वह भी प्रेम और सम्मान चाहती है। अब फैसला आपके हाथों में है कि आप कैसा पुरुष बनना पसंद करेंगे।

निशा नंदिनी
तिनसुकिया, असम

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]