ग़ज़ल : होली खेलें
होली खेलें पर नहीं डालें रंग किसी अनजान पर.
मिलें प्रेम से रंग लगायें घर आए मेहमान पर.
बच्चों के हिस्से में ही रहने दें, बस गीली होली,
गीली होली से क्यों किसी का रंग फिरे अरमान पर.
रँग चोखा हो, नहीं’ धोखा हो, गहरे रंगों से बच कर,
खेलें होली सब हमजोली अपने हीं हों निशान पर.
चंग ढोल ढफ और’ नफीरी हो-हल्ले का नशा हो बस,
भंग के रंग से कहीं किसी की बन आए न जान पर.
‘आकुल’ प्रेम दिलों में सतरंगी सपने बुनता जैसे,
सूखे रंगों से बन जाए इंद्रधनुष आसमान पर.