“मचा है चारों ओर धमाल”
उड़ते रंग अबीर-गुलाल!
खेलते होली मोहनलाल!!
कोई गावे मस्त रागनी, कोई ढोल बजावे,
मस्ती में भर करके राधा अपना नाच दिखावे,
बजाते ग्वाले हैं खड़ताल!
खेलते होली मोहनलाल!!
भोली बालाओं को, कान्हा बहलावें-फुसलावें,
धोखे से आ करके उनके मुँह पर रंग लगावें,
गोपियों के बिगड़े हैं हाल!
खेलते होली मोहनलाल!!
देवर-भाभी में होती है, जमकर आँख-मिचौली,
गली-गाँव में घूम रहीं हैं हुलियारों की टोली,
मचा है चारों ओर धमाल!
खेलते होली मोहनलाल!!
रंग-बिरंगी पिचकारी, गोपाल-बाल के कर मे,
पकवानों की सोंधी-सोंधी गन्ध समाई घर में,
सजे गुझिया-मठरी के थाल!
खेलते होली मोहनलाल!!
जीजा-साली में होती है, मोहक हँसी-ठिठोली,
खुशियों की सौगातें लेकर आई फिर से होली.
हुए हैं रंग-बिरंगे गाल!
खेलते होली मोहनलाल!!
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)