मुस्लिम वोटों का सवाल
आजकल कई पत्रकार और चैनल यह भ्रम फैलाने में लगे हुए हैं कि उ.प्र. में भाजपा की प्रचंड जीत में मुस्लिम मतों का भी योगदान है। आश्चर्य है कि परिणाम आने से पहले अधिकांश लोग यह बता रहे थे कि भाजपा प्रत्याशियों को हराने के लिए मुसलमान किस तरह एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं।
सत्य तो यह है कि भाजपा मुसलमानों के वोट लेने के लिए कितना भी प्रयास कर ले पर उसको आम मुसलमान का वोट न कभी मिला है और न मिलेगा। यह कठोर सत्य है कि मुसलमान अपना वोट किसी भी गुंडे, बदमाश, भ्रष्ट और देशद्रोही को दे देगा परन्तु राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा के उम्मीदवार को कभी नहीं। इसके कुछ अपवाद हो सकते हैं पर वास्तविकता यही है।
भ्रम फैलाने वाले वाले लोग बता रहे हैं कि प्रदेश की १३४ सीटें ऐसी हैं जिनमें मुसलमान मतदाताओं की संख्या २५% से अधिक है। भाजपा ने उनमें से १०४ सीटें जीती हैं। वे कहते हैं कि ऐसा मुसलमान वोटों के बिना नहीं हो सकता था। यह एक सतही विश्लेषण है। भाजपा इनमें से जो ३० सीटें हारी है उन सभी में मुसलमान मतदाताओं की संख्या ४५% या अधिक है। यह तथ्य बहुत महत्वपूर्ण है।
वास्तव में इन सीटों पर भाजपा की जीत का कारण हिन्दू मतदाताओं का भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण होना है। हिन्दू मतदाताओं ने एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया, जिसके सामने एकजुट मुस्लिम मत भी कम पड़ गये। लेकिन जहाँ मुसलमानों की संख्या अधिक थी वहाँ हिन्दू समाज एकजुट होकर भी भाजपा को नहीं जिता सका।
इसलिए यह बात भूल ही जाइए कि मुसलमान भी भाजपा को वोट देते हैं या दे सकते हैं। हाँ कुछ स्थानों पर कई जागरूक मुस्लिम महिलाओं ने अवश्य अपने पतियों और भाइयों की नज़र बचाकर कमल का बटन दबाया होगा, क्योंकि वे तीन तलाक और चार शादी जैसी कुप्रथाओं से मुक्ति चाहती हैं और उनको विश्वास है कि केवल मोदी जी उन्हें इन कलंकों से मुक्ति दिला सकते हैं।
मेरी विनम्र राय है कि भाजपा को इन मुस्लिम माताओं और बहिनों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इन दोनों कुप्रथाओं को तत्काल समाप्त कर देना चाहिए। यदि कठमुल्ले रोते हैं तो उनको रोने दिया जाये और कुप्रथायें मिटाने से इस्लाम ख़तरे में पड़ता है तो पड़ने दिया जाये।
— विजय कुमार सिंघल
चैत्र कृ. प्रतिपदा, सं २०७३ वि (१३ मार्च २०१७)