दयनीय कांग्रेस
कांग्रेस की जैसी दयनीय हालत आज है, वैसी शायद कभी नहीं थी, १९७७ में भी नहीं, जब समस्त उत्तर भारत में कांग्रेस का सफ़ाया हो गया था। अभी ५ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भले ही पंजाब में कांग्रेस बहुमत पा गयी हो और गोआ तथा मणिपुर में सबसे अधिक सीटें जीत ले गयी हो, पर यह मामूली सफलता उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में उसकी भारी पराजय का अंश मात्र भी पूरा करने में समर्थ नहीं है।
आज कांग्रेस की पिलपिली हालत का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि गोआ और मणिपुर में सबसे बड़ा दल होने के बाद भी कोई छोटा दल तो क्या निर्दलीय विधायक भी कांग्रेस के साथ जाने को तैयार नहीं है। इसके फलस्वरूप इन दोनों राज्यों में भी भाजपा की सरकारें बन रही हैं।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत कहीं अधिक दयनीय है। सबसे पहले तो वह सपा के साथ केवल एक चौथाई या १०५ सीटें लेकर समझौता करने को बाध्य हुई और उनमें भी अपने केवल ७ उम्मीदवार जिता सकी। यानी उसकी सफलता का अंश केवल ७% रहा, जबकि उसकी गठबंधन सहयोगी सपा ने अपने लगभग १६% प्रत्याशियों को जिता लिया। आज उ.प्र. में कांग्रेस पाँचवें नम्बर की पार्टी बनकर रह गयी है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी की यह बुरी हालत मेरे विचार से अयोग्य और भ्रष्ट नेतृत्व तथा दिशाहीन नीतियों के कारण हुई है। कांग्रेस में गांधी परिवार के अलावा किसी का नेतृत्व पनपने ही नहीं दिया गया। जिन क्षत्रपों ने कभी सिर उठाने की हिम्मत की, उनको या तो बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, या फिर बुरी तरह अपमानित करके घर बैठा दिया गया। इसी का फल आज कांग्रेस भुगत रही है।
यदि कांग्रेस को देश की राजनीति में प्रासंगिक बने रहना है तो उसे गांधी परिवार के मोह से मुक्ति पाकर नया सक्षम नेतृत्व तलाशना होगा, वरना कांग्रेस का अन्तिम संस्कार तो होने जा ही रहा है।
— विजय कुमार सिंघल
चैत्र कृ २, सं २०७३ वि (१४ मार्च २०१७)