ग़ज़ल – तू लौट आ
न हो ख़फा, तू लौट आ, दूरियाँ मिटाने को ।
तू दे ज़हर, मेरे रक़ीब, मुझे बचाने को ॥
ग़ज़ब क़शिश है ज़ालिम, तुम्हारी चाहत में ।
मचल रहा है दिल गहरे ज़ख्म खाने को ॥
न रोक मुझको आज, टूटने दे बाँहों में ।
तड़प है दिल में वस्ल-ए-शब जगाने को ॥
आ दबोच ले मुझको, तेरे बाज़ुओं में ।
जरा निचोड़ दे आँचल, मुझे भिगोने को ॥
न चाह बाकी रहे, दे दे चाहत का सिला ।
मुझे मदहोश कर दे, दर्दो ग़म मिटाने को ॥
बरस जा खुल के आज, मुझे तर कर दे ।
दिल है बेताब तेरे, आगोश में समाने को ॥
— राम दीक्षित ‘आभास’