ईश्वर का अस्तित्व भाग – २
कहाँ है?
ईश्वर के सम्बन्ध में एक तर्क यह दिया जाता है कि वो कहाँ है । हमारी बुद्धि इस पृथ्वी ,आसमान , चाँद सितारे , ग्रहों को ही जानती है । इससे आगे हमारी बुद्धि नहीं जा सकती । ईश्वर के बारे कहा गया है कि वो इन्द्रियों,मन बुद्धि से परे कि चीज है। वह सर्वत्र व्याप्त है । उसे रहने के लिए किसी “जगह” की जरूरत नहीं है वह अपनी रचना के कण कण में मौजूद है ।
उसने ऐसी रचना क्यों रची जिसमें इतने दुःख हैं ?
ईश्वर ने इतनी सुन्दर रचना रची, हर प्रकार के फल फूल, अनाज, सब्जियां , पशु, पक्षी, जानवर, जल,थल, वायु में जीवन बनाया इसलिए नहीं कि प्राणी दुःख भोगें वरन इसलिए कि जीवन कि महत्ता को समझें सुख से जीवन जियें , उनका निरंतर विकास हो और अंत में उसी में समा जाएँ । दुःख ईश्वर ने नहीं दिए दुःख के लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेवार है
मनुष्य योनि मिलने पर मनुष्य कि इच्छाएं बलवती हो जाती हैं । वो सुख कि तलाश में लग जाता है । सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । कबीर दास जी कहते हैं : माया काल की खानी है, धरै त्रिगुण विपरीत ।जहाँ जाय तहँ सुख नहीं, या माया की रीत ॥यह माया तो काल (दुःख विकार) की खान है । यह तो निर्गुण रूप धारण कर मानव के लिए विपरीत बन जाती है । यह जहाँ भी जाती है वहां सुख नहीं रह पाता । लोगों को दुःख और कष्ट देना ही माया की रीत (परम्परा ) है ।
मीठा सब कोय खात है, विष ह्वै लागे धाय । नीम ना कोई पीवसी, सबै रोग मिट जाए ॥ मीठा सब खाते हैं इसके विष रुपी भयंकर परिणाम कोई नहीं समझता ।नीम कोई नहीं खाता जिससे सब रोग दूर हो जाते हैं ।
लोग स्वाद के लिए खाते हैं भूख के लिए नहीं, फिर स्वाद ही रोग (दुःख) का कारण बनता है । अधिक से अधिक कमाता है जरूरत के लिए नहीं, लालच के लिए फिर इसी कारण दुःख का चक्र शुरू होता है । अधिक भोग, अधिक दुःख का कारण बनते हैं । दूसरे से ईर्ष्या भगवान् ने नहीं सिखाई , यह सब बातें दुःख का कारण बनती हैं जो मनुष्य का स्वयं का चुनाव है ।
“अगर वह कहीं है तो कभी तो सामने आये ”
लोग तर्क देते हैं की अगर वो है तो सामने क्यों नहीं आता ? शिरडी के साईं बाबा को एक बार एक भक्त ने अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया था । निश्चित समय पर एक सूअर वहां बार बार खाने कि ओर जाने लगा, भक्त ने डंडे मार मार के उसे भगा दिया । साईं बाबा वहां पहुंचे ही नहीं । भक्त ने शिकायत की कि आप भोजन करने क्यों नहीं आये ? बाबा जी ने अपनी पीठ दिखाई कि मैं तो आया था तुमने मुझे डंडे मार मार के भगा दिया । सामने तो वो कई बार आता है पर हम ही पहचान नहीं पाते ।
मनुष्य अपनी बुद्धि से सोचता है कि मैं उसे मानूंगा तो वो खुश हो जाएगा यदि नहीं मानूंगा तो नाराज हो जाएगा । यह मानव बुद्धि के तर्क हैं ईश्वर को मानने से ईश्वर खुश नहीं होता और ना मानने से नाराज नहीं होता । वह मान अपमान से दूर है । यदि कोई उसे मानता है तो उसकी राह आसान हो जाती है । नहीं माने तो कष्ट उठाता है ईश्वर का इसमें कोई हाथ नहीं है, मनुष्य कि सोच ही उसके सुख दुःख का कारण है ।
ईश्वर से प्रार्थना है कि सब का भला हो सब पर उसकी कृपा हो ।