“चारों ओर बसन्त हुआ”
खेतों में बिरुओं पर जब, बालियाँ सुहानी आती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
सोंधी-सोंधी महक उड़ रही गाँवों के गलियारों में,
रंगों की बौछार हो रही आँगन में, चौबारों में,
बैसाखी-होली की खुशियाँ घर-घर में छा जाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
सूरज पर यौवन आया है, शीतलता का अन्त हुआ,
उपवन-कानन खिला हुआ है, चारों ओर बसन्त हुआ,
झूम-झूमकर नवकोपलियाँ मन्द समीर बहाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
हँसतीं हैं बुराँश की कलियाँ, काफल “रूप” दिखाता है,
सुन्दर पंख हिलाती तितली, भँवरा राग सुनाता है
शुक-कोकिल मस्ती में भरकर, अपने सुर में गाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
आम-नीम बौराये फिर से, जामुन भी बौराया है,
मधुमक्खी ने अपना छत्ता, फिर से नया बनाया है,
नीड़ बनाने को चिड़ियाएँ, तिनके चुन-चुन लाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)