गीत/नवगीत

“चारों ओर बसन्त हुआ”

खेतों में बिरुओं पर जब, बालियाँ सुहानी आती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।

सोंधी-सोंधी महक उड़ रही गाँवों के गलियारों में,
रंगों की बौछार हो रही आँगन में, चौबारों में,
बैसाखी-होली की खुशियाँ घर-घर में छा जाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।

सूरज पर यौवन आया है, शीतलता का अन्त हुआ,
उपवन-कानन खिला हुआ है, चारों ओर बसन्त हुआ,
झूम-झूमकर नवकोपलियाँ मन्द समीर बहाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।

हँसतीं हैं बुराँश की कलियाँ, काफल “रूप” दिखाता है,
सुन्दर पंख हिलाती तितली, भँवरा राग सुनाता है
शुक-कोकिल मस्ती में भरकर, अपने सुर में गाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।

आम-नीम बौराये फिर से, जामुन भी बौराया है,
मधुमक्खी ने अपना छत्ता, फिर से नया बनाया है,
नीड़ बनाने को चिड़ियाएँ, तिनके चुन-चुन लाती हैं।
जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है