माँ
तूँ कहाँ है माँ ?
जब रहा करती थी
पुरे घर में रोशनी की तरह,
उजाला फैली हुई थी
परिवार में खुशहाली थी
नदी की तरह किनारों को
एक में समेटकर चलनेवाली माँ….
तूँ कहाँ है ?
तेरे चले जाने के बाद-
यहाँ सब बदल गया….
चारोतरफ सूनापन हो गया….
रोशनी अंधकार में विलीन हो गयी
ममता रूपी नदी के किनारों में अलगाव
आँसू रूपी पानी में बिखराव
एक धारा का कई धारा में बहाव
सब हो गया।
ठण्डी हवा आँचल की….
छांव ममता की….
सुखद पल गोद की…..
सबके सब ओझल हो गये…
तूँ कहाँ है माँ ?
हाथों से दी जाने वाली दूध की कटोरी
अब सपनों में भी नहीं मिलती।
जब तुम यहाँ से गई माँ
कुछ पल भी नहीं बिता होगा
दूध अलग-अलग हो गया
अपना-पराया का पहरा हो गया माँ
सब कुछ बिखर गया
शायद तुम्हें नहीं पता होगा
तुम्हारे आँचल की ठण्डी हवा में
शीतलता मन्द पड़ गयी है
ममता की चादर में छिद्र हो गया है
जिससे-
गर्मी में धूप लगने का
बरसात में पानी टपकने का
जाड़ा में ठण्डा पड़ने का
अहसास होता है।
तेरी गोद अब सिमटती जा रही है
जिसमें सभी लोग नहीं अट पा रहें हैं…
तूँ कहाँ है माँ ?
पुनः आ जाओ एक बार
हम सभी को समेट लो
आँचल, ममता, गोद की
दीवारों के बीच में ……
_________रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’
____कान्हपुर कर्मनाशा कैमूर बिहार
________________12-12-2016
समय–10:00am
स्थान –मुगलसराय