सूची-पत्र
इस एकांत कक्ष में निर्णायक मंडल के जज और चार सदस्यों में मीटिंग चल रही थी.
आज यहाँ दो महीने पहले घोषित ‘भारतीय संस्कृति बचाओ’ विषय पर राष्ट्र-स्तरीय काव्य प्रतियोगिता का अंतिम निर्णय होना था. सदस्यों ने पूरे देश से आई हुई प्रविष्टियों का गहन अध्ययन करके उत्कृष्ट रचनाओं के रचनाकारों के नाम सहित सूची-पत्र तैयार कर लिये थे. सबने अपनी-अपनी पसंद के अनुसार रचनाओं को १० में अंक दिए थे. अब केवल पाँच सर्वोत्कृष्ट रचनाओं का चयन होना था. जिनके रचनाकारों को एक विशेष साहित्यिक समारोह में नगद पुरस्कार से सम्मानित किया जाना था.
अचानक जज साहब ने एक पुर्जा अपने बैग से निकालकर सामने टेबल पर फैला दिया और सदस्यों से कहा-
“एक बार अच्छी तरह सूची का निरीक्षण करके बताइये कि इन सदस्यों का नाम आपकी बनाई हुई सूची में है क्या, अगर है तो उनकी क्या पोज़ीशन है?”
चारों सदस्य सूची पर निगाह दौड़ाने लगे.
“इसमें से तो एक नाम भी हमारी सूची में नहीं है सर! लेकिन…” कहते हुए एक सदस्य ने सवालिया नज़रों से जज साहब की तरफ देखा.
“है तो गंभीर बात, लेकिन मजबूरी है… रात को ही मंत्रालय से काल किया गया कि पुरस्कार इन्हीं प्रतिभागियों को इसी क्रम में मिलना चाहिए. तो आप लोग अपनी-अपनी सूची में ये ५ नाम, रचनाओं के नाम सहित शामिल करके इसी क्रम से सर्वाधिक अंक देकर सूची पर अपने अपने हस्ताक्षर करके मुझे दे दीजिये ताकि मैं फ़ाइनल एक्शन ले सकूँ.”
तुरंत कंप्यूटर खटखटाने लगे और नए नामों की रचनाओं को खोजकर सामने लाया गया.
“देखिये सर, इन सबकी कविताएँ कितनी स्तरहीन हैं? इस समय हम निर्णायक के महत्वपूर्ण पद पर हैं, यह तो सरासर अंधेर है सर!” एक सदस्य ने डरते डरते कहा.
“आप इस बात की फ़िक्र मत कीजिये, मंत्रालय से जुड़ते ही रचनाओं का स्तर कई गुना बढ़ गया है.”
“मगर सर, यह होनहार प्रतिभाओं के साथ अन्याय और भारत की गौरवशाली संस्कृति का अपमान न होगा? क्या ऐसी प्रतियोगिताओं से नई पीढ़ी का विश्वास नहीं उठ जाएगा? मैं सम्बंधित उच्चाधिकारियों के द्वार खटखटाऊँगा, न्याय के लिए फ़रियाद करूँगा”
“ऐसे हर द्वार पर हम-आप जैसों के प्रवेश पर पहरा लगा होता है बंधु! अच्छा है, अपने चिंतन के द्वार बंद करके आप सब चुपचाप सूची-पत्र पर अपनी सहमति की मोहर लगा दीजिये.” कहते हुए जज साहब उठकर खड़े हो गए.