लघुकथा

सार्थक सोच

रामलाल जी को किसी आवश्यक कार्य से कहीं जाना था । ख़राब स्वास्थ्य की वजह से डॉक्टरों ने उन्हें बाइक चलाने से मना किया था । श्रीमती जी से बेटे रमेश के बारे में पुछने पर पता चला वह अपने मित्रों के साथ कहीं गया हुआ है । उनको परेशान देख श्रीमती जी भी परेशान हो गईं । अचानक रामलाल जी ने श्रीमती जी को आवाज दी ” अरी भागवान ! राशी तो घर पर ही है न ? और मैं नाहक ही परेशान हो रहा हूँ । जरा उसे आवाज दे दो । मेरे लिए वही स्कूटर चला लेगी । ज्यादा देर नहीं लगेगी । बस यूँ गया और यूँ आया । ”
श्रीमती जी का मुंह खुला का खुला रह गया ” क्या कह रहे हैं आप ? लोग क्या कहेंगे ? ”
” लोग क्या कहेंगे यह छोडो भागवान ! तुम क्या कह रही हो ? क्या हमारी बिटिया हमारे बेटे रमेश से किसी मायने में कम है ? फिर क्या फरक पड़ता है कि मेरा स्कूटर मेरी बेटी चलाये या बेटा ? चलो ! जल्दी से उसे भेज दो मैं इंतजार कर रहा हूँ । ” कहने के साथ ही रामलाल जी बाहर स्कूटर के पास जाकर उसे पोंछने लगे और श्रीमती जी राशी को आवाज देती हुयी घर के अन्दर चली गई ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।